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कुछ बातें अंदर ही दबी रह जाती हैं..
किसी पुरानी किताब में सूख चुके गुलाब के जैसी,
उनका सतह पर आना उतना ही कठिन हो जाता है....
जितनी किसी सिगरेट के कश से मन के उलझनों का बच पाना,
परंतु एक प्रश्न छोड़ जाती है वो आखिरी कश के साथ,
क्या स
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