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ये कैसो दस्तुर
आपे के खातिर
मन हुवे
आपे से दूर...
तोड़े मोह के बधन
चलो घर से दूर
चिड़िया जैसे रैन बसेरो
हो गये वैसे ही मन अब घर से दूर
नवा लोग मिले
नवा रिश्ता बना
नवा मकान लिवो
वो भी घर से दुर
जहां छत भी हव
चेहरा भी हव
और मुस्कान भी
पर उ घर नाही
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