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मैं किधर जा रहा हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ
ये शागिर्दों की टोली ,बस चले जा रहा हूँ
रोज,सपनो में आती नित् नये अवमाने
गफ़लत में बीती वो कल के अफ़साने
बदलती फ़िजा को पढ़े जा रहा हूँ
ये,मेहनत की सीढ़ी चढ़े जा रहा हूँ।।
मैं किधर.....
कल के उस मातम को आज से हटाना है
नकब्त क
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