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मेरी चेतना के धागे बारम्बार,
गुजरते हैं इस अनंत ब्रह्मांड से,
खोज में तुम्हारी...
देह की बाध्यता को छोड़,
प्रतीक्षा की गोह में,
मेरी यात्रा है समय से परे...
तुम्हारे बिन,
मुझे अनंत काल तक,
शून्य में भटकना स्वीकार होगा;
मेरी मुक्ति मात्र प्रेम में है।
©agrwalswati
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