
Share1 Bookmarks 391 Reads1 Likes
"दो दिन का गुस्सा"
वो उसका लहज़ा से भरा गुस्सा
वो उसकी यादों से भरा इक किस्सा
हर सिम्त से आती हुई एक धूल
कई बातों में उसकी उलझी हुई भूल
बर्क-ऐ-तजल्ली सी चमकती हुई मुझ पर
आब-ए-रवा सा बहती हुई मुझ पर
आलाम-ए-इंसानी में डूबा हुआ वो
वो दो दिन के गुस्से में लाल होता हुआ वो
पस-ए-पर्दा के पीछे खामोशी के लब
कतरा-ए-सबनम की तरह है अब
महव-ए-खुदा से ही मांगना बेहतर है
फ़रियाद-ए-इंसान से करना जहालियत है
ये दिन- ओ -शाम को गुज़र जाना ही था
गुस्से से भरा चेहरा उसका उतना ही था
ये क्या ना समझी में कर जाते है हम
ग़म जदा हो के वापस वहीं ठहर जाते है हम
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments