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पता हैं तुम को,
की भूल कर सब कुछ
जब मैंने तेरा साथ दिया..
उलझन तेरे पास बदी थी
मुश्किलों में मैं साथ खड़ी थी
हाथ नहीं तब चूटे थे
शब्द नहीं तब रूठे थे
पर तूने कैसा खेल खेला
खुशियों से जैसे मेल किया
ऐसे पीठ दिखा के भागे थे
जैसे रिश्ते ही अपने आधे थे
मैं भी खुशियां लेकर आयी थी
रौशनी साथ में लाई थी
पर तूने अच्छा काम किया
अँधेरा मेरे नाम किया
सब रिश्तों को तूने तोड़ दिया
अकेला मुझको छोड़ दिया
तुझको जो मैंने माना था
उन जस्बातों को मोड़ दिया.
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