
जिंदगी के चौराहे पर कुछ इस तरह खड़ा हूं,
राहें चार है पर असल राह से भटका हूं,
एक राह पर प्रेमिका,
दूसरे राह पर पेशा,
तीसरे राह पर परिवार,
चौथे राह पर मेरा सपना,
और बीच भंवर मैं हूं खड़ा,
और मझधार में हूं फंसा,
राह चारों है मुझे बहुत प्यारी,
पर एक साथ सबको लेना है बड़ा भारी,
परिवार को मैं हूं बहुत प्यारा,
पर उन्हे चाहिए मेरा सहारा,
अरे नही हूं मैं इतना बड़ा,
की सब कुछ मुझे आता हो संभालना,
मुझे प्यारी है मेरी प्रेमिका,
रखना है मुझे उस से जिंदगी भर का नाता,
पर उसके घरवालों को मैं नहीं हूं भाता,
क्योंकि उनकी नजरों में हूं मैं निठल्ला,
और नही है मेरे पास कोई बड़ा धंधा,
दफ्तर की नौकरी भी मेरी अटकी,
ज्यादा पगार साहब को खटकी,
रंग रूप के मेरे सहकर्मी साथी,
जिंदगी जिए जैसे दिखावटी,
पिता के है नौकरी,
उनके पगार की है रोटी,
घर में दो बहने छोटी,
शादी की चिंता में उनके, मां है रोती,
पिता की नौकरी से चलना घर का मुश्किल है खर्चा,
मेरे तो जिंदगी का उड़ गया पर्चा,
क्या प्यार सबने मेरे पेशे से किया है?
क्या बिन पेशे से इंसान ने सिर्फ जहर पिया है ?
तोड़कर दिल मेरा बना दिया मुझे क्रूर ,
और कर दिया मेरे सपनो को मुझसे दूर,
प्रेमिका भी अब मेरी प्रेमिका नही रही,
रुपयों के पीछे किसी दूसरे के संग वो भी गई,
किया जिसने था मुझसे बेशुमार प्यार का वादा,
छोड़ दिया है उसने भी अब संगम आधा,
कामयाबी देख कर सबको करनी है शादी,
न हो कामयाब तो पूरी जिंदगी है खाली,
झूठ के मायाजाल से अब सच के परदे खुल रहे है,
मध्यम वर्गी लड़के के हसीन सपने यूंही झूल रहे है।
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