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जिंदगी के चौराहे पर कुछ इस तरह खड़ा हूं,
राहें चार है पर असल राह से भटका हूं,
एक राह पर प्रेमिका,
दूसरे राह पर पेशा,
तीसरे राह पर परिवार,
चौथे राह पर मेरा सपना,
और बीच भंवर मैं हूं खड़ा,
और मझधार में हूं फंसा,
राह चारों है मुझे बहुत प्यारी,
पर एक साथ सबको लेना है बड़ा भारी,
परिवार को मैं हूं बहुत प्यारा,
पर उन्हे चाहिए मेरा सहारा,
अरे नही हूं मैं इतना बड़ा,
की सब कुछ मुझे आता हो संभालना,
मुझे प्यारी है मेरी प्रेमिका,
रखना है मुझे उस से जिंदगी भर का नाता,
पर उसके घरवालों को मैं नहीं हूं भाता,
क्योंकि उनकी नजरों में हूं मैं निठल्ला,
और नही है मेरे पास कोई बड़ा धंधा,
दफ्तर की नौकरी भी मेरी अटकी,
ज्यादा पगार साहब को खटकी,
रंग रूप के मेरे सहकर्मी स
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