
अस्तित्व में आते ही बदले पल पल
सजीव निर्जीव सभी का अस्तित्व।।
बदलने के लिए बस अस्तित्व ही पर्याप्त
अस्तित्व ही पर्याय न बदलना संभव नहीं
बदलना संभावी है।।
निर्जीव जड़ शून्य है भाव के आभाव में है
इनका बदलना परतंत्र है प्रकृति अनुबंधित है
किंतु प्रकृति से आत्मसात है।।
सजीव धन्य है जो निर्बुधि है अल्पमति हैं
इनका बदलना स्वतंत्र है प्रकृति अनुगामी है
प्रकृति से अनुमोदित है।।
और इधर मानव जीव है जो ज्ञानी है अभिमानी है
भान का अभिमान है हठी की हठ इतनी कि
बदलना मनवांछित हो।।
इनका बदलना भी अटल है किंतु बंधा है
बदलते ये भी प्रकृति वश नहीं किंतु
वांछित सीमा बंधन में ।।
मानव का बदलना
प्रकृतिपोषित नहीं है
पूर्ण प्रकृतिशोषित है
और जो शोषित होगा वो प्रतिशोध लेगा
प्रत्यक्ष या परोक्ष आज नहीं कल सही ।।
विकास की राह पर विनाश पथ पर
पल पल बदलना निरंतर
बदले अस्तित्व पल पल।।
© किशन लाल रोहिल्ला.
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