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मेरी नीम-ख़्वाब पलकों को
अपनी लबों से छू कर तुमने
महका दिए थे मेरे ख़्वाब..
महक रहे हैं आज भी
मेरे उंगलियों के पोरों पर
तुम्हारे रेशमी लम्स..
भीनी सी महक लिए
चाँद की उजली किरण
खिड़की के दरज से
दस्तकें दे रही हैं आज..
ये कैसी ख़ुशबू से ये शब
मख़मूर होने लगी है..!!
किरण के.
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