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बड़ी ग़मगीन थीं आँखे फ़िराक-ए-यार में लेकिन
ख़्याल-ए-वस्ल से फिर शाम रंगीं हो गई मेरी
-किरण के.
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बड़ी ग़मगीन थीं आँखे फ़िराक-ए-यार में लेकिन
ख़्याल-ए-वस्ल से फिर शाम रंगीं हो गई मेरी
-किरण के.
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