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सर्द झोंको की लहरें और
ग़म के कोहरे में नहाई हुई
सियाह लफ़्ज़ों से टपकती हुई
दिसम्बर की सर्द रात में
सिगरेट के धुँए में लिपटे हुए
साँसों के शिकस्ता टुकड़े हैं
शहर सारा सो रहा है और
मैं काट रही हूँ यख़-बस्ता रातें
तेरी यादों की शाल ओढ़कर..!!
-किरण के. ✍
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