
Share0 Bookmarks 128 Reads2 Likes
सर्द झोंको की लहरें और
ग़म के कोहरे में नहाई हुई
सियाह लफ़्ज़ों से टपकती हुई
दिसम्बर की सर्द रात में
सिगरेट के धुँए में लिपटे हुए
साँसों के शिकस्ता टुकड़े हैं
शहर सारा सो रहा है और
मैं काट रही हूँ यख़-बस्ता रातें
तेरी यादों की शाल ओढ़कर..!!
-किरण के. ✍
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments