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मुताल'अ कीजिए साहिब मिरी इस चश्म-ए-तर का भी
के लफ़्ज़ों में बयाँ हो ना सकेगी दास्ताँ मेरी
किरण के. ✍
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मुताल'अ कीजिए साहिब मिरी इस चश्म-ए-तर का भी
के लफ़्ज़ों में बयाँ हो ना सकेगी दास्ताँ मेरी
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