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कविता : उल्टा
कवि: जोत्सना जरीक
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अगर तुकबंदी 'बारा' हैं
'चैप' को पंख मिलते हैं
कोई खा गया तो उड़ जाएगा
ढक्कन खोला जा सकता था।
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बहुत स्वादिष्ट 'टेलीवाजा'
क्या आपने खाना खा लिया
नहीं नहीं खाना मत खाओ
भौंरा बन जाएगा।
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गुनगुनाते हुए
फूल से फूल तक नाचना
माँ के रोने के बाद बस
नमकीन आंसू में तैरते हुए।
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