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☁️ जोत्सना जरीक ☁️

khatuniajotsnakhatuniajotsna May 13, 2022
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कविता :  उल्टा
 कवि: जोत्सना जरीक


 .
 अगर तुकबंदी 'बारा' हैं
 'चैप' को पंख मिलते हैं
 कोई खा गया तो उड़ जाएगा
 ढक्कन खोला जा सकता था।

 .
 बहुत स्वादिष्ट 'टेलीवाजा'
 क्या आपने खाना खा लिया
 नहीं नहीं  खाना मत खाओ
 भौंरा बन जाएगा।

 .
 गुनगुनाते हुए
 फूल से फूल तक नाचना
 माँ के रोने के बाद बस
 नमकीन आंसू में तैरते हुए।

 

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