
Share0 Bookmarks 55 Reads1 Likes
कविता : चिल्लाना
कवि : जोत्सना जरी
(1)
ई सागर और नादिया की पशो
मय वि चालू तुम वि चलो
जिंदेगी भी एयिसि वेरि
दे दो या ले लो।
(2)
मेरे कान के पास सुबह की हवा
और मुझसे कहा...
चलो पलटते हैं
नए परिवेश को।
.
मेरी खुशियाँ सब गुच्छों में है
पेड़ों में खिल रहा है
सभी चूजों की भीड़ उमड़ रही है
मुझे बुला रहा है।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments