पत्थरों से दोस्ताना क्या हुआ
आज तक है आइना टूटा हुआ
देर से सूरज जो है डूबा हुआ
है अंधेरा हर तरफ छाया हुआ
ऊँची-ऊँची चिमनियों में आज भी
देखता हूँ मैं लहू जलता हुआ
तेरी परवाज़ें बहुत महदूद हैं
आसमाँ
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