आईनों का रूप जब से बेवफ़ा होने लगा
आदमी की क़ुरबतों में फासला होने लगा
गुफ़तगू कुछ ग़म के पहलू पर भी करते अक़रबा
इक तबस्सुम पर हमारे तबसरा होने लगा
फसले गुल की ज़ाफ़रानी लज़्ज़तें जाती रहीं
च
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