
टिम टिम करती जुगनू है तू
मैं काली अंधेरी रात सा।
ईश्म की ठंडी पवन है तू
मैं बिन सावन बरसात सा।
सरी की बहती धारा है तू ,
मैं ठहरा गंगा घाट सा
कमल की जैसी कोमल है तू,
मैं सूखी टहनी पात सा
मखमल की मसनद है तू तो,
मैं चर-चर करता खाट सा।
तू शहर की चंचल परी सी है,
मैं अनपढ़ मूर्ख देहात सा।
तेरे सपने दौड़ लगाती है,
मैं बैठा रहता ठाट सा।
तू गुमसुम एक ठहराव सी है,
मैं झूमता बारात सा।
नवजात खिलती कली है तू,
मैं उजड़ी पड़ी हयात सा!
तू नवजोत किरण है उम्मीदों की,
मैं घनघोर घटा विराट सा।
हर खेल की जीती बाजी है तू,
मैं शतरंज का अंतिम मात सा
कंचन सुधा की प्याली है तू,
मैं खाली पड़ा परात सा
हर चेहरा समझा करती है तू
मैं खुद से ही अज्ञात सा!
सितम को रौंदा करती है तू,
मैं देखता हजरात सा।
पूस की चांद सी सर्द है तू,
मैं जलता उल्कापात सा।
तू क्षितिज है अनंत सी,
मैं उभर रहा शुरुआत सा।
तू क्षितिज है अनंत सी,
मैं उभर रहा शुरुआत सा।
~Keshav Sharma
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