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याद है
जब पहली बार
धोखा मिला था
गैरों से
महसूस हुआ था
अंदर से सब कुछ हिलता हुआ
छाती फट गई थी
आसमान हिल गया था
झनझना गया था 
अंतर तक कोंना कोंना
हिल गई थी दुनियां

और तब हमने तय किया था
अपनों के बीच लौट जाना

हमने भी कैसे कैसे
सपने देखे थे
अपनों को खुश रखना था
बहुत प्यार देना था
कुछ अपनापन पाने के लिए

हर मन का भेद
बता देना था
हर हाल में रिश्ते
संजो संजो कर रखना
चाहा था बहुत
शिद्दत से चाहा था

अपनों को बहुत अपना माना
हर मनभावन उपहार
अपनों को दे दिया

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