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ऐ ख़ुदा


ऐ ख़ुदा मैंने दिल से की तेरी बंदगी, माना तेरा हर हुक्म

फिर क्यों फैला है य ज़ुल्मत-सरापा ।

है मेहरूम क्यों मेरी आस्ता तेरे नावाज़ से ,

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