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आज मेरी
उस अकेली कोठरी के दरवाज़े का
दो-चार,पांँच बार खटखटाना,
धीमी रोशनी का थोड़ा तेज हो जाना,
किताबों को
जाने-अनजाने हथेलियों का सहलाना,
दीवारों के अलावे,पुराने यारों का आ जाना।
खैर, नहीं भी आते यार मेरे,तो भी
कोठरी की दीवा
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