
Share0 Bookmarks 56 Reads0 Likes
जुगनुओं का भी नहीं बसेरा है,
अभी दूर बहुत सवेरा है,
कोई तो रोशनी दिखाओ
न जाने क्युँ इतना अंँधेरा है?
दाँयें हाथ को
बाँये की नहीं ख़बर है,
रूठी हुई नज़र है,
लग रहा है मानो
सोया पूरा शहर है,
किसे बताएंँ कि
खो-सा गया मेरा डेरा है,
मैं ढूँढू किन निगाहों से
चाँद भी आज़ नहीं मेरा है,
कोई तो रोशनी दिखाओ
न जाने क्युँ इतना अंँधेरा है?
~राजीव नयन
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments