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जरा-सी सुध ले लो शहर की
क्यों बेसुध पड़े हो ?
इतना कोलाहल है, फिर भी
क्यों इस कदर अड़े हो?
कभी-कभी तो लगता है ये अचरज कि
आईने के सामने,कैसे बुत बने खड़े हो?
~राजीव नयन
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जरा-सी सुध ले लो शहर की
क्यों बेसुध पड़े हो ?
इतना कोलाहल है, फिर भी
क्यों इस कदर अड़े हो?
कभी-कभी तो लगता है ये अचरज कि
आईने के सामने,कैसे बुत बने खड़े हो?
~राजीव नयन
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