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बहुत हुआ अब कहर तुम्हारा,
थाम उफनती लहरों को अब
बन जा तू शांतचित्त निर्मल धारा,
सावन की हल्की बरसात-सा बन जा
बन जा तू अब वसंत सा प्यारा।।
हर भ्रम अपने टूट गए,
कितने ही हमसे रूठ गए,
सरल नहीं है जीवन की पगडंडी
कितने ही पीछे छूट गए,
मान ले तू अब हम सब की बात,
रख दे हम पर आशीष का हाथ,
कर शीतल हिम-सा, क्रोध का पारा,
सावन की हल्की बरसात-सा बन जा
बन जा तू अब वसंत सा प्यारा।।
तेरे ही सृजन का प्रमाण हैं हम,
इस भुवन पे,विज्ञान रूपी विहान
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