
बहुत हुआ अब कहर तुम्हारा,
थाम उफनती लहरों को अब
बन जा तू शांतचित्त निर्मल धारा,
सावन की हल्की बरसात-सा बन जा
बन जा तू अब वसंत सा प्यारा।।
हर भ्रम अपने टूट गए,
कितने ही हमसे रूठ गए,
सरल नहीं है जीवन की पगडंडी
कितने ही पीछे छूट गए,
मान ले तू अब हम सब की बात,
रख दे हम पर आशीष का हाथ,
कर शीतल हिम-सा, क्रोध का पारा,
सावन की हल्की बरसात-सा बन जा
बन जा तू अब वसंत सा प्यारा।।
तेरे ही सृजन का प्रमाण हैं हम,
इस भुवन पे,विज्ञान रूपी विहान हैं हम,
अनुसंधान के नव प्रयास से
तेरी सृष्टि में करते नवनिर्माण हैं हम,
भूल हुई अगर इस प्रयास में
कर क्षमा, दे दे हम सब को सहारा,
सावन की हल्की बरसात-सा बन जा
बन जा तू अब वसंत सा प्यारा।।
निराकार हो या हो जो भी स्वरूप,
इस जग का कण-कण है तेरा ही रूप,
कर जोड़ खड़े हैं सम्मुख तेरे
चाहे हो छाँव या फ़िर हो तपती धूप,
मुक्त करो अब घोर प्रकोप से
कर दो अब कल्याण हमारा,
सावन की हल्की बरसात-सा बन जा
बन जा तू अब वसंत सा प्यारा।।
~राजीव नयन
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