
'विनोद दुआ के बारे में अंतहीन संस्मरण हैं....' - अविनाश दास

दस साल पुरानी तस्वीर है। मुझे फ़ख़्र है कि हमने कई सालों तक एक ही न्यूज़ रूम शेयर किया है। मुझे उस रात को लेकर अब भी बड़ा गिल्ट होता है, जब उन्होंने फ़ोन करके मुझे बड़ी तहज़ीब से हड़काया था। मैं शिफ़्ट इंचार्ज था और रात एक बजे के क़रीब उनका फ़ोन आया। मैं विनोद दुआ बोल रहा हूं। टिकर पर जो चल रहा है, उसमें अशुद्धियां हैं। आपके रहते ऐसी अशुद्धियां ऑन एयर जा रही हैं, यह शर्म की बात है या नहीं? मैं सचमुच इतना शर्मिंदा हुआ कि बयान नहीं कर सकता। मुझसे अक़्सर हड़बड़ी में गड़बड़ी हो जाती रही है। उसके बाद एक बार कुछ लिखने के बाद मैं उसे दुबारे ज़रूर पढ़ता हूं। मीडिया छोड़ कर फ़िल्मी दुनिया में आने पर वह बहुत ख़ुश हुए थे। यह जो तस्वीर है, उस बीच के वक़्फ़े की है, जब मैं कहीं नहीं था।
पिछले साल जब राहत इंदौरी गुज़रे, तब मैंने श्रद्धांजलि स्वरूप एक ग़ज़ल लिखी। विनोद जी ने फ़ेसबुक पर वह ग़ज़ल पढ़ी, तो मुझे फ़ोन किया। वह अपने एक शो में उसे पढ़ना चाहते थे। मुझसे पूछा कि आपके परिचय में क्या कहूं। मैंने कहा कि मेरे बारे में अलग से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है, आप मेरी ग़ज़ल अपने प्रोग्राम में पढ़ेंगे, मेरे लिए यही बड़ी बात होगी। वह हंसे। प्रोग्राम में उन्होंने मेरा परिचय अपना कलीग बताते हुए दिया, तो यूट्यूब पर रीवाइंड कर कर के मैंने उसे कई बार सुना।<
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