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ज़िंदगी से लम्हे चुरा बटुए में रखता रहा

KavishalaKavishala June 16, 2020
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लम्हों की क़ीमत बताते हुए अनुपम खेर ने सुनाई यह कविता


ज़िंदगी से लम्हे चुरा बटुए में रखता रहा

फ़ुर्सत से खर्चुंगा बस यही सोचता रहा

उधड़ती रही जेब, करता रहा तुरपाई

फिसलती रही खुशियां, करता रहा भरपाई


एक दिन फुरसत पाई सोचा

ख़ुद को आज रिझाऊं

बर्षों से जो जोड़े

वो लमहे खर्च कर आऊं


खोला बटुआ लमहे ना थे

जाने कहां रीत गए

मैंने तो खर्चे नहीं

जाने कैसे बीत गए


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