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समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई
कभी चेहरा नहीं मिलता कभी दर्पन नहीं मिलता
वो ताज़ा-दम हैं नए शो'बदे दिखाते हुए
अवाम थकने लगे तालियाँ बजाते हुए
अज़हर इनायती
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
बशीर बद्र
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना
निदा फ़ाज़ली
मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने कभी चाँदी के क़लम आते हैं
बशीर बद्र
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
राहत इंदौरी
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
मुनव्वर राना
काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियास
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