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मिथिलेश बारिया की कविताएँ

KavishalaKavishala May 8, 2021
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तुम साँसों से नापते हो इसे

मैं ज़िन्दगी, दोस्तों में गिनता हूँ

________

छत टपकती है उसके

कच्चे घर की ,

वो किसान फिर भी बारिश की

दुआ माँगता है....

________

मेरे पास एक नदी थी.

मेरे पास एक नदी थी, एक पेड़ था,

एक छोटा पहाड़ था...

मैं खिलौनों की दुकानों से

वाकिफ नहीं था...


मैंने संभालकर रखे हैं,

कुछ पुराने खत और लिफाफे...

कल बच्चे ये न पूछ लें,

डाकिया कौन था...

________

सच बोलने से...

सच बोलने से अब डरने लगा है...

वो बच्चा बड़ों-सी बातें करने लगा है...


उन मुस्कुराती तस्वीरों ने दीवारों के...

जाने कितने जख्म छुपा रखे हैं...

________

तह की हुई...

तह की हुई कमीजों के नीचे, 

एक तस्वीर दबा रखी है...

कुछ बातें ऐसी हैं, 

जो सबसे छुपा रखी हैं...


उसे भूलने की आदत थी...

मुझे यह याद न रहा...

________

उसने सुबह उठकर...

उसने सुबह उठकर खाली स्कूटर बड़ी 

देर तक हिलाया... बच्चे समझदार थे,

स्कूल पैदल निकल गए...


जब हाथ आसमां तक नहीं पहुंचते 

मैं पैर, बुजुर्गों के छू लेता हूं...

________

बहुत दिन हुए हम...

बहुत दिन हुए हम तीनों साथ नहीं मिले...

तुम, मैं और वक्त...


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