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मैं खाकी हूँ – सुकीर्ति माधव

KavishalaKavishala December 25, 2021
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दिन हूँ, रात हूँ,

सांझ वाली बाती हूं,

मैं खाकी हूँ

आंधी में, तूफ़ान में,

होली में, रमजान में,

देश के सम्मान में,

अडिग कर्तव्यों की,

अविचल परिपाटी हूँ,

मैं खाकी हूँ

तैयार हूँ मैं हमेशा ही,

तेज धूप और बारिश,

हँस के सह जाने को,

सारे त्योहार सड़कों पे,

‘भीड़’ के साथ ‘मनाने’ को,

पत्थर और गोली भी खाने को,

मैं बनी एक दूजी माटी हूँ,

मैं खाकी हूँ

विघ्न विकट सब सह कर भी,

सुशोभित सज्जित भाती हूँ,

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