
Share0 Bookmarks 159 Reads0 Likes
मची है भारत में कैसी होली सब अनीति गति हो ली।
पी प्रमाद मदिरा अधिकारी लाज सरम सब घोली॥
लगे दुसह अन्याय मचावन निरख प्रजा अति भोली।
देश असेस अन्न धन उद्यम सारी संपति ढो ली॥
लाय दियो होलिका बिदेसी बसन मचाय ठिठोली।
कियो हीन रोटी धोती नर नाहीं चादर चोली॥
निज दुख व्यथा कथा नहिं कहिबे पावत कोउ मँह खोली।
लगे कुमकुमा बम को छूटन पिचकारिन सो गोली॥
बह्यो रक्त छिति पंचनदादिक मनहुँ कुसुम रँग घोली।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments