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Couplets by Mithelesh Baria (#mbaria)

KavishalaKavishala June 16, 2020
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मुझे संजीदा लोग आज भी पसंद हैं ...

मेरी कुछ आदतें, आइनों ने बिगाड़ रखी है ... 



ये दुनिया जब भी मुस्कुराकर मिलती है ...

सच कहूं, तुम्हारी कमी बहुत खलती है ... 



पत्थर सिर्फ राहों में ही नहीं थे.... 

कुछ दोस्तों ने भी हाथों में उठा रखे थे



स्टेशन पर उस चाय बेचने वाले को , 

ट्रेन कि हर खिड़की से उम्मीद होती है ...



जब सुबह होता है

शाम चली जाती है।



दीवारों से दोस्ती रखना ...

आख़िर में तस्वीरें, ये ही संभालतीं है..



तुम भी इसी हवा में साँस ले रही होंगी कहीं ...

चलो कुछ तो है एक जैसा हम में ....



टिकेटें लेकर बैठें हैं मेरी ज़िन्दगी की कुछ लोग

तमाशा भी भरपूर होना चाहिए ....



अभी अभी घर लौटा हूं...... 

अपना कुछ वक़्त बेच कर...... 



घर मेरा भूखा भूखा सा रहा..

दफ्तर मेरा.. मेरे सारे इतवार खा गया.. !!



रास्तों ने चाहा तो फिर मिलेंगे हम,

मंज़िलों का तो कोई इरादा नहीं दिखता। 



घर का रेनोवेशन करवाया, 

चिड़ियो को पसंद नहीं आया...



तुम सामने बैठी थी ...

चाय जल गई उस दिन ...



पत्ते सूख गए थे उस पेड़ के लेकिन,

छाव वो पहले जैसी ही दे रहा था



ज़िन्दगी की राहों की.. जब मंजिल मौत है...

रास्तों का फिर ... क्यों न लुत्फ़ उठाया जाए... 



ईद में सैंवई, दिवाली में गुजिये, क्रिसमस में केक 

अपनी जुबां को मैंने, हर मज़हब की तालीम दी है



आज जिस्म हैं ... 

कल याद हो जाएंगे ... 



उस शख़्श की तन्हाई की क्या बात करूं ...

एक सिगरेट की डब्बी खरीदी, और खुद पी गया ...



वो जो उस मोड़ पर मकान दिख रहा है....

कभी वहाँ एक घर था...




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