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आज की रात तुझे आख़िरी ख़त और लिख दूँ
कौन जाने यह दिया सुबह तक जले न जले?
बम बारूद के इस दौर में मालूम नहीं
ऐसी रंगीन हवा फिर कभी चले न चले।
ज़िंदगी सिर्फ़ है ख़ुराक टैंक तोपों की
और इंसान है एक कारतूस गोली का
सभ्यता घूमती लाशों की इक नुमाइश है
और है रंग नया ख़ून नई होली का।
कौन जाने कि तेरी नर्गिसी आँखों में कल
स्वप्न सोए कि किसी स्वप्न का मरण सोए
और शैतान तेरे रेशमी आँचल से लिपट
चाँद रोए कि किसी चाँद का कफ़न रोए।
कुछ नहीं ठीक है कल मौत की इस घाटी में
किस समय किसके सबेरे की शाम हो जाए
डोली तू द्वार सितारों के सजाए ही रहे
और ये बारात अँधेरे में कहीं खो जाए।
मुफ़लिसी भूख ग़रीबी से दबे देश का दुख
डर है कल मुझको कहीं ख़ुद से न बाग़ी कर दे
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