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आग बहे तेरी रग में, तुझ सा कहाँ कोई जग में...

KavishalaKavishala June 16, 2020
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आग बहे तेरी रग में

तुझ सा कहाँ कोई जग में

है वक्त का तू ही तो पहला पहर

तू आँख जो खोले तो ढाए कहर

तो बोलो, "हर हर हर"

तो बोलो, "हर हर हर"

तो बोलो, "हर हर हर"

ना आदि, ना अंत है उसका

वो सबका, ना इनका-उनका

वही है माला, वही है मनका

मस्त मलंग वो अपनी धुन का

जंतर मंतर तंतर ज्ञानी

है सर्वग्य स्वाभिमानी

मृत्युंजय है महाविनाशी

ओमकार है इसी की वाणी

(इसी की, इसी की, इसी की वाणी)

(इसी की, इसी की, इसी की वाणी)

भांग धतूरा, बेल का पत्ता

तीनों लोक इसी की सत्ता

विष पीकर भी अडिग, अमर है

महादेव हर-हर है जपता

वही शून्य है, वही इकाय

वही शून्य है, वही इकाय

वही शून्य है, वही इकाय

जिसके भीतर बसा शिवाय

तो बोलो, "हर हर हर"

तो बोलो, "हर हर हर"

अघोरा नाम परो मन्त्र

ना इस्तितत्वं गुरोः परा (महादेव)

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय

भस्माङ्गरागाय महेश्वराय

नित्याय-शुद्धाय दिगम्बराय

तस्मै कराय नमः शिवाय

शिव रक्षमाम्

शिव पाहिमाम्

शिव त्राहिमाम्

शिव रक्षमाम्

शिव पाहिमाम्

शिव पाहिमाम्

महादेव जी त्वं पाहिमाम्

शरणागतम् त्वं पाहिमाम्

आव रक्षमाम् शिव

पाहिमाम् शिव

आँख मूँद कर देख रहा है

साथ समय के खेल रहा है

महादेव, महा-एकाकी

जिसके लिए जगत है झाँकी

जटा में गंगा, चाँद मुकुट है

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