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पंच परमेश्वर : मुंशी प्रेमचंद

Kavishala ReviewsKavishala Reviews October 8, 2021
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आज 8 अक्टूबर है। इसी दिन महान साहित्यकार ‘मुंशी’ प्रेमचंद जी का देहांत हुआ था। इसलिए हम ने सोचा कि आज हम लेखकों को उन्हें श्रद्धांजलि देनी चाहिए। इसलिए हम आपके सामने उनकी रचना के सारांश और समीक्षा प्रस्तुत करते है। हम ने जो कहानी चुनी है वह उनकी प्रसिद्ध कृतियों में से एक है,

“पंच परमेश्वर”।

सारांश: जुम्मन शेख और अलगू चौधरी बचपन से दोस्त थे। वे एक साथ नहीं खाते-पीते थे और धर्म भी अलग थे, लेकिन उनके विचार समान थे। यही उनकी दोस्ती का आधार था। जुम्मन की एक बूढ़ी खाला ‘मौसी’ थी। उसके पास थोड़ी सी जमीन थी। जुम्मन ने उन्हें फुसलाया और संपत्ति अपने नाम कर ली।

जब तक संपत्ति पंजीकृत नहीं हुई, जब तक रजिस्ट्री नहीं हुई, तब तक खाला का बहुत सम्मान था। रजिस्ट्री होते ही सब कुछ बदल गया। अब खाला को केवल सूखी रोटी खाने और कड़वे शब्द सुनने को मिलते थे। कुछ दिनों तक खाला ने सुना और सहा। जब वह और नहीं सह सकती थी, तो उसने जुम्मन से कहा कि मुझे हर महीने कुछ पैसे दे दो, मैं अलग से खा-पका लूंगी। लेकिन, जुम्मन माना कर दिया और खाला ने उसे पंचायत की धमकी दी। खाला ने सबको इकट्ठा किया और अलगू को भी पंचायत में आने को कहा। शाम को जब पंचायत हुई तो खाला ने आपबीती सुनाई और पंचों से न्याय मांगा। वह पंच के निर्णय को मानने के लिए तैयार थी। जब सरपंच चुनने की बारी आई तो जुम्मन ने भी कहा कि किसी को भी चुनो, मैं भी पंचो की बात मानने को तैयार हूं।

तब खाला ने अलगू को सरपंच बनाया। जम्मून खुश होगया की अलगू तो मेरा दोस्त है, जीत तो मेरी ही होगी। तब खाला ने अलगू को कहा, बेटा दोस्ती के लिए ईमान नहीं बेचा जाता। पंच ना तो किसी का दोस्त होता है, ना दुश्मन। पंच के दिल में ईश्वर बसता है, उनके मुंह से जो बात निकलती है वह ईश्वर की होती है। काफी देर तक सवाल जवाब करने पर, अलगू ने फैसला सुनाया की “खाला को खर्च देने लायक लाभ

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