
आर.के. नारायण हमारे साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध लेखक थे। उनके लिखे गई साहित्य पर फिल्म व टीवी धारावाहिक बने हैं। उनके साहित्य की जानकारी से पहले हम आपको उनके जीवन का परिचय देते है।
आर.के. जी का जन्म 10 अक्टूबर,1906 को मद्रास में हुआ था। उनका पूरा नाम रासीपुरम कृष्णस्वामी अय्यर नारायणस्वामी है। उनके पिता एक स्कूल प्रिंसिपल थे। नारायण अपनी दादी से अंकगणित, पौराणिक कथा, शास्त्रीय संगीत और संस्कृत सीखी। अपने पिता के साथ रहते हुए उन्होंने लिखना भी शुरू कर दिया था। उन्होंने घर पर ही रहना तथा उपन्यास लिखना भी शुरू कर दिया था।
उनके काम में जो उपन्यास शामिल है जैसे "द गाइड", "द फाइनेंशियल मैन", "संपत", "द डार्क रूम", "द इंग्लिश टीचर", "मालगुडी डेज के कई भाग", इत्यादि। उन्हे "द गाइड" के लिए साहित्य अकैडमी पुरस्कार 1958 में दिया गया जो की उनका पहला बड़ा अवार्ड था। फिर इस पुस्तक को फिल्म में बदलकर बनाया गया। उन्होंने सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार जीता।
मालगुडी भारत के लेखक आर के नारायण द्वारा रचित एक काल्पनिक शहर है। जिस पर, 1986 में एक टीवी सीरियल का निर्देशन किया जिसे, 'मालगुडी डेज' कहते हैं। इस सीरियल मालगुडी डेज को दूरदर्शन पर प्रसारित किया जाता था। हम मालगुडी डेज सीरियल का टाइटल सॉन्ग "ताना ना ना ना ना" आज भी नहीं भूल सकते। मालगुडी गांव का जो सेट बनाया गया था वह अगुम्बे गांव में है। इस शहर को जीवित बनाने के लिए इस नाटक के पात्र व कर्मचारी 3 साल तक इस गांव में रहे थे। 'स्वामी एंड फ्रेंड्स भाग' में जो घर था, वह आज भी हम देख सकते हैं।
'स्वामी और उसके दोस्त' पहली कहानी थी जो 80 के दशक में जन्में लोगों को अपने बचपन की याद दिलाएगी। स्वामी को देखकर बचपन का वह हर किस्सा याद आ जाएगा जो हमारी यादों के पन्नों में धुंधली हो गई थी : 'कि स्कूल में पटाई होना', 'दोस्तों के साथ घूमना', 'खुले मैदानों में खेलना', 'पिता की डांट', 'दादी का प्यार', 'मां का दुलार', 'नई खुराफाते ', 'बारिश में पानी में नाव चलाना', 'लोगों की बातों पर यकीन कर लेना', 'स्कूल से भागना', 'पढ़ाई से जी चुराना', 'परीक्षा की टेंशन', 'गर्मियों की छूटियो मैं मजे', 'छड़ी से मार खाना', 'प्लान बनाना', 'स्कूल ना जाने के लिए बीमारी का बहाना बनाना', आदि; जो आज के बच्चे सोच नहीं सकते।
"स्वामी और उसके दोस्त की कहानी" :-
10 साल के बच्चे स्वामीनाथन उर्फ स्वामी के इर्द-गिर्द घूमती है। पहले एपिसोड में, स्वामी सुबह उठ कर नहा धोकर स्कूल जाते हैं। वह एक क्रिश्चियन स्कूल अल्बर्ट मिशन में पढ़ता है।
उस दिन स्कूल में उसके अध्यापक श्री कृष्ण की बुराइयां और लॉर्ड जीसस की अच्छाइयां स्कूल के बच्चों को बताते हैं। स्वामी को यह बात पसंद नहीं आती, तो वह बहस करने लग जाता है। इस पर नाराज होकर अध्यापक स्वामी के कान मरोड़ देते हैं। इस बात के बारे में स्वामी के पिता को, जो कि एक वकील है, उनको पता चल जाता है और वह स्कूल के प्रिंसिपल को पत्र लिखते हैं जिसमें उनके अध्यापक को सही शिक्षा देने की सलाह देते हैं। प्रिंसिपल स्वामी के पिता की चिट्ठी पढ़कर उन्हें स्कूल के मसले स्कूल में सुलझाने की सलाह देते हैं।
राजन जिसके पिता मालगुडी के डी.एस.पी है, वह मद्रास के अंग्रेजी स्कूल में से मालगुडी पढ़ने आता है। स्वामी उससे दोस्ती करने का कोई मौका नहीं गावाता है और उसका दोस्त बन जाता है। स्वामी के इस बर्ताव से उसके बाकी दोस्त उसे 'राजन की पूंछ' कहने लगते हैं और वह उस से झगड़ पड़ता है। स्वामी का पुराना दोस्त मणि, राजन से बहुत ईर्ष्या रखता है और उसको लड़ाई के लिए चुनौती देता है। राजन यह चुनौती स्वीकार कर लेता है, और अगले दिन दोनों नदी के किनारे मिलते हैं। राजन अपने पिता की बंदूक लेकर आता है, जिसे मणि डर जाता है और फिर बाद में वह दोनों दोस्त बन जाते हैं।
विश्लेषण :-
आर.के. नारायण की मालगुडी डेज की कहानियों के किरदार बड़े आम व साधारण होते थे। जिस तरह वह अपनी इन साधरण कहानियों का लेखन करते थे, ये सरल सी कहानियां भी रोचक, भावुक, हास्यास्पद बन जाती थी। जैसे कि सुबह से लेकर रात तक एक आम आदमी क्या-क्या करता है और कौन सी छोटी-छोटी चीजें उसे खुशी देती है, दुख में भी कैसे वह खुशी ढूंढ लेता है। ऐसा लगता है कि लेखक खुद को उस किरदार में ढाल कर सोचता है और उसके विचारो को साधरण व सरल भाषा में लिखते है। जिसे पढ़कर हम स्वयं को उस काल्पनिक गांव में जाकर खुद को भी जीवंत अनुभव करते हैं।
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