'कभी गांव कभी कॉलेज' समीक्षा  |  सूरज सिंह परिहार's image
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'कभी गांव कभी कॉलेज' समीक्षा | सूरज सिंह परिहार

Kavishala ReviewsKavishala Reviews August 29, 2022
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कभी गाँव कभी कॉलेज: ये कहानी है ऊँची दुकान के फ़ीके पकवानों की, बड़े-बड़े नाम वालों की, पर छोटे दर्शन वालों की। कहानी में जब-जब कॉलेज का ज्वार चढ़ता है, गाँव में आते ही भाटा सिर पर फूट जाता है। कहानी के किरदार ऐसे कि प्रैक्टिकल होने के नाम पर ग़रीब आदमी की लंगोट भी खींच लें। कुछ कॉलेज के छात्र ऐसे हैं जिनकी जेबों तक से गाँव की मिट्टी की सुगंध आती है और कुछ ऐसे जो अच्छे शहरों की परवरिश से आकर इस ओखली में अपना सि‍र दे गए हैं। कहानी के हर छात्र का सपना आईएएस/आईपीएस बनने का नहीं है, कोई सरपंच भी बनना चाहता है तो कोई कॉलेज ख़त्म होने के पहले ही ब्याह का प्लेसमेंट चाहता है। कहानी में अर्श है और फ़र्श भी, आसमान भी है और खजूर भी। कहानी में गाँव में कॉलेज है या कॉलेज में गाँव, प्रेम जीतता है या पढ़ाई, दोस्ती जीतती है या लड़ाई– ये आपको तय करना है।

समीक्षा | सूरज सिंह परिहार: कुल 159 पन्नों की किताब ' कभी गांव कभी कॉलेज ' एक बेहद ही रोचक कहानी है। यह दास्तां मैंने लगभग सिंगल सिटिंग में ही सफाचट कर दी। खत्म होने पर यही लगा कि थोड़ी और लिखी होती तो किसी का क्या बिगड़ जाता, लेकिन संभवतः लेखक ने किसी एक्सपर्ट न्युमरलॉजिस्ट से सलाह की होगी या कोई टोटका किया होगा, तभी 200 पन्ने नहीं लिखे.

बहरहाल पुस्तक अपने आप में एक कंप्लीट पैकेज है, यहां हंसी की हिलोरें हैं तो तंज के तमाचे भी हैं। यहां सब मौसम भरा पड़ा है, गर्मी की लू है तो जाड़े की ठंड भी है। हां, वो बात अलग है कि गर्मी में मट्ठे और जाड़े में गर्म चाय का जुगाङ लेखक ने पुरजोर भिड़ा रखा है। कहने की आवश्यकता नहीं कि कहानी में बारिश हो ही रही है, यादों की सर्वत्र, जिसमें नोस्टाल्जिया के पकोड़े जहां तहां तले जा रहे हैं।

कथानक ऐसा आम है कि हमारे आपके बीच से ही उठाया हुआ लगता है, अवश्य ही इसको लेखक ने थोड़ा थोड़ा स्वयं जिया है और यह एक जीवन रिपोर्ट ना बन जाए इसलिए थोड़ा कल्पना का साहित्यिक घोल लगाया है। खैर, बात जो भी हो, रंग गहरा और चटक आया है। इसमें बस यात्रा वाली घटना, पुलिस चौकी- तालाब वृत्तांत, गांव की क्लास में वहां के बच्चों का नख शिख वर्णन, लाइब्रेरी और टपरी के चटक वर्णन के साथ चेतक भैय्या का चमक वर्णन (फेसबुक पर प्यारी मुस्कान द्वारा ठगा जाना) मेरे पसंदीदा घटनाक्रम हैं।

कहानी में सब तरह के सतरंगी- अतरंगी पात्र हैं, लेकिन एक भी पात्र नकली नहीं है, विवेक- विनय- सुलोचन- चैनसिंह की च

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