गुलिवर्स ट्रैवल : बचपन की यादों का एक दौरा's image
Story7 min read

गुलिवर्स ट्रैवल : बचपन की यादों का एक दौरा

Kavishala ReviewsKavishala Reviews October 28, 2021
Share0 Bookmarks 218232 Reads3 Likes


28 अगस्त 1726 में नॉवेल "गुलिवर्स ट्रैवल" प्रकाशित हुई थी। यह नाम पढ़ते ही हमारे स्मृति पट पे बचपन में पढ़ी, इसकी पुरी कहानी याद आ जाती है। 'बचपन' जो एक ऐसा दौर होता है जहां, आप परीलोक कथाएं, अपनी कल्पना, सपने, पढ़ी-सुनी कहानियों पर यकीन करते है। हर एक चीज आपको अपने सच होने का एहसास दिलाती है। सच मानो यह यकीन कहीं ना कहीं हमारे मन में किसी कोने में आज भी जिंदा है। भले ही हम कितने बड़े हो चुके हो, या फिर सच जानते हो कि यह सब नहीं होता है।

बचपन की हजारों कहानियों में से ही एक कहानी "गुलिवर्स ट्रेवल" की भी है कि - एक पानी के जहाज पर वह काम करता था। तूफान आने पर जहाज डूबने लगा तो, गुलिवर और उसके कुछ साथी छोटी सी नाव के सहारे बच गए। कुछ दिन ऐसे बीते, फिर एक और तूफान ने उनकी कश्ती को उल्टा दिया और वह सब पानी में गिर गए। फिर किसी को किसी का कुछ पता नहीं चला कि वह कहां है। ऐसे बहते-बहते गुलिवर एक टापू के किनारे पहुंच गया। वह वहां बेहोश था। जब धूप से उसकी आंख खुली, तो उसने उठने की कोशिश की। पर वह उठ नहीं पाया। उसे अपने आसपास हल्का सा शोर सुनाई तो दे रहा था, पर कोई उसे दिखाई नहीं दे रहा था। तभी उसे पैरो पर कुछ चलने का एहसास होता है। थोड़ी देर में वह देखता है कि, 6 इंच की आकृति वाले बौने लोग उसकी छाती पर चढ़े हुए थे। सभी के हाथों में भाले, तीर-कमान थे। जो उस पर निशाना साधे हुए थे। उस ने हिलने की कोशिश की तो वह भाले, तीर-कमान उस पर चलाने लगे, साथ ही साथ अपनी भाषा में उसे कुछ बोल रहे थे। जो कि गुलिवर को समझ नहीं आ रहा था। बौने को 'लिलिपुटियन ' कहते थे। वह जगह "लिलिपुट" थी। जहां वह पहुंचा, वहां हर चीज छोटी थी। 6 इंच के बौने थे। उनके खेत, पेड़-पौधे गुलिवर के लिए फूलों की कियारियो जैसी थी। कई हजारों लकड़ियों के टुकड़े जोड़कर एक गाड़ी बनाई और कई सारे पहिए लगाए। उस पर लेटा कर गुलिवर को राजा के पास ले जाया गया। उसके आकार को देखकर सभी लोग डरे हुए थे। उसके हिलने मात्र से ही उस पर तीर बरसाने लगे। पर राजा बहादुर था। वह किसी उसे मंच पर चढ़कर उससे कुछ बोलने लगा जो गुलिवर को समझ नहीं आया। पर गुलिवर ने इशारों में राजा को यह समझा दिया कि, वह भूखा प्यासा है। उसे कुछ खाने को दो। राजा दयालु भी था। उसके खाने के लिए 100 से ज्यादा गाड़ियां खाने से भरकर आई, बड़े-बड़े बैरल शराब के आए। परंतु, गुलिवर के लिए वह कुछ कौर - कुछ घूंट के बराबर ही थे। खाने-पीने के बाद, राजा ने उसकी तलाशी का आदेश दिया। कुछ बौने उसकी जेब में घुसे और तलाशी लेने लगे। अगर बाहर की दुनिया गुलिवर के लिए बहुत छोटी लग रही थी, तो वहीं पर उन दोनों के लिए गुलिवर की जेब गुफा लग रही थी। जेबों में रखा सामान विशाल लग रहा था। जैसे कि - गुलिवर का रुमाल बहुत बड़े कपड़े का टुकड़ा लग रहा था। एक मशीन नुमा कोई चीज निकली जिसमें 20 खंबे लगे थे। वह गुलिवर की कंघी थी। दो लकड़ी के खंभे मिले, जिस पर बड़ी मुश्किल से वो लोग चढ़ सके। ऊपर चढ़कर देखा तो, उसमें लोहे की बड़ी चादरे लगी हुई थी। पूछने पर पता चला कि, एक उस्तरा था दूसरा चाकू था। एक लंबी सी चांदी की जंजीर लटकी रही थी, इस जंजीर में एक इंजन बड़ा बंधा हुआ था। जो कि, एक बड़ा भारी गोला था। जो आधा चांदी का और आधा अन्य धातु का बना था। वह पारदर्शी था जिसके अंदर ग

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts