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ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या
[जौन एलिया]
परिवार और माता पिता का होना जिंदगी में होना कितना महत्वपूर्ण है, अगर यह जानना हो तो 'हम दो हमारे दो' जरूर देखे! एक मनोरंजन से भरपूर फिल्म जिसमे रिश्तो के महत्व को बड़ी खूबी से दिखाया गया है! पुरषोत्तम मिश्रा का पहला प्यार हो या 'वर्षो से इसी दस्तक का इंतज़ार कर रहा था' वाला डायलॉग हो बड़ी सहजता से रिश्तो को और उसकी गहराई को दर्शाता है! जाति-पाति को न मानने की प्रथा हो या हम दो हमारे दो की प्रथा हो फिल्म मे बड़ी आसानी से दिखाया गया है! रत्ना पाठक और परेश रावल की कॉमेडी और एक नोक झोंक भरी भरी प्यार वाली जिंदगी फिल्म को अलग तरह का पारिवारिक एहसास दिलाती है!
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