
वात्सल्य रस : माता-पिता के स्नेह की अभिव्यक्ति के भाव को व्यक्त करने वाला रस

वात्सल्य रस की परिभाषा — वात्सल्य रस का स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है। इस रस में बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम,माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम,गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है। वात्सल्य नामक स्थाई भाव की विभावादि के संयोग से वात्सल्य रस के परिणत होता है।
निम्न लिखित कुछ कविताएं वात्सल्य रस के उदाहरण है :-
(i) " किलकत कान्ह घुटरुवनि आवत "
किलकत कान्ह घुटरुवनि आवत।
मचिमय कनक नंद के भांजन बिंब पक्रिये धतत।
बालदसा मुख निरटित जसोदा पुनि पुनि चंदबुलाबन।
अंचरा तर लै सुर के प्रभु को दूध पिलावत। ।
— सूरदास
व्याख्या : उपर्युक्त पंक्ति में कृष्ण के बाल लीलाओं का वर्णन है। कृष्ण अपने घुटनों पर चल रहे हैं किलकारियां मार रहे हैं और बाल लीला का प्रदर्शन कर रहे हैं। इन सभी क्रियाकलापों को देखकर यशोदा मां आनंदित हो रही हैं , इन सभी लीलाओं ने माता को रिझा दिया है। वह अपने कान्हा को अचरा तर छुपाकर दूध पिला रही हैं।
(ii) " ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां "
ठुमक चलत रामचंद्र
ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां
ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां
ठुमक चलत रामचंद्र
किलकि-किलकि उठत धाय
किलकि-किलकि उठत धाय, गिरत भूमि लटपटाय
धाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियां
ठुमक चलत... बाजत पैंजनियां
ठुमक चलत रामचंद्र
अंचल रज अंग झारि
अंचल रज अंग झारि, विविध भांति सो दुलारि
विविध भांति सो दुलारि
तन मन धन वारि-वारि, तन मन धन वारि
तन मन धन वारि-वारि, कहत मृदु बचनियां
ठुमक चलत... बाजत पैंजनियां
ठुमक चलत रामचंद्र
— तुलसीदास
व्याख्या : प्रस्तुत पंक्ति में श्री राम के बाल्य अवस्थाओं के क्रीडा को दर्शाया गया है। जिसमें वह घुटनों के बल कभी चलते हैं , तो कभी खड़े होकर चलने का अभ्यास करते हैं। उनके पैरों में बंधी पायल की घुंघरू की आवाज पूरे राजमहल में गूंज रही है। जिसको देखकर राजा – रानी और सेविकाएं मंत्रमुग्ध हो रही हैं।
(iii) " मैया मैं नहिं माखन खायो "
मैया मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परै ये सखा सबै मिली मेरे मुख लपटायौ।।
देखि तु ही सींके पै भाजन ऊँचे धरि लटकायौ।।
तुही निरख नान्हे कर अपने मैं कैसे करि पायो।।
— सूरदास
व्याख्या : बाल-कृष्ण की बात-सलभ सफाई का है। कृष्ण ने मक्खन चुराकर खा लिया है और वे रंगे हाथों पकड़े भी गए हैं, क्योंकि उनके मुख पर मक्खन लगा हुआ है। माता यशोदा के डाँटने पर बालकृष्ण मधुर सफाई देते हुए कहते हैं - मां यशोदा के नाराज हो जाने के कारण कृष्ण उन्हें अपनी लीलाओं के द्वारा मनाने की कोशिश कर रहे हैं। वह यह बताना चाह रहे हैं , कि उन्होंने माखन चोरी कर नहीं खाया। यह जो मुख पर माखन का लेप है , वह बाल ग्वालों ने मिलकर लगाया है। ताकि कोई भी इसे देखकर चोर समझे। वह इस प्रकार अनेकों उदाहरण देकर अपनी मां को मनाने की कोशिश कर रहे हैं।
(iv) " मैया कबहि बढ़ेगी चोटी "
मैया कबहि बढ़ेगी चोटी।
किती बार मोहि दूध पिवत भई, यह अजहूँ है छोटी।।
तू जो कहति बल की बैनी ज्यों, हवै है लांबी मोटी।।
काँचो दूध पिवावत पचि-पचि देत न माखन
— सूरदास
व्याख्या : सूर ने बाल-कृष्ण के हृदयस्थ मनोभावों, बुद्धि-चातुर्य, स्पर्धा, खीझ, अपराध करके उसे छिपाने तथा उसके बारे में कुशलता के साथ सफाई देने की प्रवृत्ति आदि के बड़े मनोहारी चित्र अंकित किये हैं। बालक कृष्ण दूध पीने में आनाकानी करते हैं और माता यशोदा उसे फुसलाकर दूध पिलाने का प्रयत्न करती है। माता यशोदा उसे कहती है कि तुम दूध पी लो, बलराम की तरह तुम्हारी चोटी भी बढ़ जाएगी। दूध पीते हुए बाल-कृष्ण कहते हैं।
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