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देश मना रहा है कृष्ण जन्माष्टमी - आइये पढ़ें कुछ कृष्ण प्रेमी कविओं को

Kavishala LabsKavishala Labs August 18, 2022
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जहां देखो वहां मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है

उसी का सब है जल्वा जो जहां में आश्कारा है

- भारतेंदु हरिश्चंद्र

आज पूरा देश प्रमुख त्योहार जन्माष्टमी मना रहा है।यह पर्व पूरी दुनिया में और विशेष रूप से भारत में पूर्ण आस्था एवं श्रर्द्धा से मनाया जाता है।माना जाता है की भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था और इसी दिन को श्री कृष्ण जन्माष्टमी या श्री कृष्ण जयंती के रूप में मनाया जाता रहा है। 

जैसा कि सभी जानते हैं कि श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में द्वापर युग में हुआ था। जहाँ इस महापर्व को बड़े ही धुम- धाम से मनाया जाता है, जो पूरे विश्व का आकर्षण केंद्र बन जाता है। 

माखन चोर, कृष्ण कन्हैया, नंदकिशोर, बाल गोपाल जैसे अनेको नाम से पुकारे जाने वाले श्री कृष्ण के जन्म उत्सव पर उन्हें अपना अराध्य मानने वाले पावन उपवास रखते हैं। 

प्यार में कैसी थकन कह के ये घर से निकली 

कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक 

- कुंवर बेचैन

आपको बता दें कृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता हैं। देवकी और वासुदेव के पुत्र और यशोदा के लाल श्री कृष्ण को राधा प्रमी भी कहा जाता है। 

द्वारकाधीश श्री कृष्ण का जन्म अराजकता के क्षेत्र में हुआ था। जब उत्पीड़ण और बुराई हर जगह फैल चुकी थी जिसका अंत करने के लिए उनका आगमन हुआ। कहा जाता है की मथुरा की जेल में जन्म के उसी रात को उनके पिता वासुदेव ने उन्हें यमुना के पार गोकुल गाँव में याशोदा और नंद के घर छोड़ दिया था ताकी, पापी कंस से उनकी जान बचाया जा सके।



कृष्ण प्रेमी मीराबाई

श्री कृष्ण की बात हो तो उनकी परम भक्त मीराबाई का नाम आ ही जाता है।जो सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और महान कवयित्री थीं। 

उनकी कविताओं से उनका कृष्ण के प्रति प्रेम,आत्मसमर्पण और भक्ति साफ दिखाई पड़ती है। उन्होंने अपने जीवन को श्री किष्ण के नाम कर दिया था, जिन्हें वे अपना पति स्वीकार कर चुकि थी।आपको बता दें मीराबाई का जन्म1498 में पाली के कुडवी गांव में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ था। इनका विवाह उदयपुर के महाराज भोजराज से हुआ था जिनका देहान्त विवाह के कुछ समय बाद ही हो गया था। परन्तु कहा जाता है कि इसके बाद भी उन्होंने अपना श्रृंगार नहीं उतारा क्योंकी वास्तव में तो वे श्री कृष्ण के वधु के रूप में खुद को देखतीं थी । उन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन साधु-संतों की संगति मे हरिकीर्तन करते हुए बिताया।


मीरा बाई के मधुर श्लोक और उसका आपके सामने प्रस्तुत हैं:


मेरे तो गिरधर गोपाल दुसरो न कोई।

जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई।

- मीराबाई

प्रस्तुत दोहे में कृष्ण भक्ति में लीन मीरा बाई कहती हैं कि मेरे तो बस श्री कृष्ण हैं, जिन्होंने अपनी एक उंगली पर पूरा पर्वत उठा लिया था,और गिरधर हो गए। उनके अलावा मेरा और कोई नहीं है।साथ ही बढ़ते हुए वह कहती हैं, जिसके सिर पर मोर का पंख मुकुट हैं,वही मेरे पति हैं।


तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।

छाड़ि दई कुलकि कानि कहा करिहै कोई।।

- मीराबाई

प्रस्तुत दोहे मे कृष्ण प्रेमी मीराबाई जी कहती हैं कि मेरे न कोई पिता हैं, और ना ही माता हैं,न कोई भाई न कोई बहन , लेकिन मेरे गिरधर गोपाल है जो मेरे सब कुछ हैं । 


पायो जी मैंने राम रतन धन पायो..

वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो ।

पायो जी मैंने...

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