
देश मना रहा है कृष्ण जन्माष्टमी - आइये पढ़ें कुछ कृष्ण प्रेमी कविओं को

जहां देखो वहां मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है
उसी का सब है जल्वा जो जहां में आश्कारा है
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
आज पूरा देश प्रमुख त्योहार जन्माष्टमी मना रहा है।यह पर्व पूरी दुनिया में और विशेष रूप से भारत में पूर्ण आस्था एवं श्रर्द्धा से मनाया जाता है।माना जाता है की भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था और इसी दिन को श्री कृष्ण जन्माष्टमी या श्री कृष्ण जयंती के रूप में मनाया जाता रहा है।
जैसा कि सभी जानते हैं कि श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में द्वापर युग में हुआ था। जहाँ इस महापर्व को बड़े ही धुम- धाम से मनाया जाता है, जो पूरे विश्व का आकर्षण केंद्र बन जाता है।
माखन चोर, कृष्ण कन्हैया, नंदकिशोर, बाल गोपाल जैसे अनेको नाम से पुकारे जाने वाले श्री कृष्ण के जन्म उत्सव पर उन्हें अपना अराध्य मानने वाले पावन उपवास रखते हैं।
प्यार में कैसी थकन कह के ये घर से निकली
कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक
- कुंवर बेचैन
आपको बता दें कृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता हैं। देवकी और वासुदेव के पुत्र और यशोदा के लाल श्री कृष्ण को राधा प्रमी भी कहा जाता है।
द्वारकाधीश श्री कृष्ण का जन्म अराजकता के क्षेत्र में हुआ था। जब उत्पीड़ण और बुराई हर जगह फैल चुकी थी जिसका अंत करने के लिए उनका आगमन हुआ। कहा जाता है की मथुरा की जेल में जन्म के उसी रात को उनके पिता वासुदेव ने उन्हें यमुना के पार गोकुल गाँव में याशोदा और नंद के घर छोड़ दिया था ताकी, पापी कंस से उनकी जान बचाया जा सके।
कृष्ण प्रेमी मीराबाई
श्री कृष्ण की बात हो तो उनकी परम भक्त मीराबाई का नाम आ ही जाता है।जो सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और महान कवयित्री थीं।
उनकी कविताओं से उनका कृष्ण के प्रति प्रेम,आत्मसमर्पण और भक्ति साफ दिखाई पड़ती है। उन्होंने अपने जीवन को श्री किष्ण के नाम कर दिया था, जिन्हें वे अपना पति स्वीकार कर चुकि थी।आपको बता दें मीराबाई का जन्म1498 में पाली के कुडवी गांव में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ था। इनका विवाह उदयपुर के महाराज भोजराज से हुआ था जिनका देहान्त विवाह के कुछ समय बाद ही हो गया था। परन्तु कहा जाता है कि इसके बाद भी उन्होंने अपना श्रृंगार नहीं उतारा क्योंकी वास्तव में तो वे श्री कृष्ण के वधु के रूप में खुद को देखतीं थी । उन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन साधु-संतों की संगति मे हरिकीर्तन करते हुए बिताया।
मीरा बाई के मधुर श्लोक और उसका आपके सामने प्रस्तुत हैं:
मेरे तो गिरधर गोपाल दुसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई।
- मीराबाई
प्रस्तुत दोहे में कृष्ण भक्ति में लीन मीरा बाई कहती हैं कि मेरे तो बस श्री कृष्ण हैं, जिन्होंने अपनी एक उंगली पर पूरा पर्वत उठा लिया था,और गिरधर हो गए। उनके अलावा मेरा और कोई नहीं है।साथ ही बढ़ते हुए वह कहती हैं, जिसके सिर पर मोर का पंख मुकुट हैं,वही मेरे पति हैं।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।
छाड़ि दई कुलकि कानि कहा करिहै कोई।।
- मीराबाई
प्रस्तुत दोहे मे कृष्ण प्रेमी मीराबाई जी कहती हैं कि मेरे न कोई पिता हैं, और ना ही माता हैं,न कोई भाई न कोई बहन , लेकिन मेरे गिरधर गोपाल है जो मेरे सब कुछ हैं ।
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो..
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो ।
पायो जी मैंने...
खरचै न खूटै चोर न लूटै दिन दिन बढ़त सवायो।
पायो जी मैंने...
जनम जनम की पूंजी पाई जग में सभी खोवायो।
पायो जी मैंने...
सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तर आयो।
पायो जी मैंने...
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरष हरष जस गायो।
पायो जी मैंने....
- मीराबाई
महान कवियित्री और संत मीराबाई जी कृष्ण की भक्ति में सराबोर होकर कहती है,मैने राम रूपी बड़े धन को प्राप्त किया है मेरे सद्गुरू ने कृपा करके ऐसी अमूल्य वस्तु भेट की हैं, उसे मैने पूरे मन से अपना लिया है।उसे पाकर मुझे लगा मुझे ऐसी वस्तु प्राप्त हो गई है, जिसका जन्म-जन्मान्तर से इन्तजार था। अनेक जन्मो में मुझे जो कुछ मिलता रहा हैं बस उनमे से यही नाम मूल्यवान प्रतीत होता हैं। वह कहती हैं, यह नाम मुझे प्राप्त होते ही दुनिया की अन्य चीजे खो गईं हैं। इस नाम रूपी धन खर्च करने पर कभी घटता नही हैं, न ही चुराया जा सकता है, यह दिन पर दिन बढ़ता जाता हैं। यह ऐसा धन हैं जो मोक्ष का मार्ग दिखता हैं।
वैसे तो आज के दिन हर मंदिर को विशेष तौर पर सजाया जाता ही है पर कुछ मंदिर विशेष रूप से सजाए जाते हैं, जहाँ दर्शन करने के लिए लोग दूर - दूर से आते हैं।
आइए ऐसे ही कुछ विशेष मंदिरों की बात करते हैं
देखिए होगा श्री-कृष्ण का दर्शन क्यूं-कर
सीना-ए-तंग में दिल गोपियों का है बेकल
- मोहसिन काकोरवी
गुजरात के द्वारका में स्थित द्वारकाधीश मंदिर:
जगत मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध गुजरात का सबसे प्रसिद्धि कृष्ण मंदिर,द्वारकाधीश मंदिर है. जो चारों धामों में से पश्चिमी धाम है. आपको बता दें यह मंदिर गोमती क्रीक पर स्थित है और 43 मीटर की ऊंचाई पर बना है।
जिसकी यात्रा के बिना आपकी गुजरात में धार्मिक यात्रा पूरी नहीं मानी जाएगी।
यहाँ जन्माष्टमी के दौरान दूर-दूर से लोग अपने आराध्य के करने आते हैं, इस मंदिर की सजावट आलोकित होती है पूरा मंदिर अंदर और बाहर से खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है।
वृंदावन में स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर:
वृंदावन में स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर,सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर । भगवान श्री कृष्ण ने अपने बचपन का समय वृंदवन में ही बिताया था। जन्माष्टमी के दिन मंगला आरती होने के बाद यहाँ श्रद्धालुओं के लिए रात 2 बजे ही मंदिर के दरवाजे खुल जाते हैं।
उड़ीसा में स्थित जगन्नाथ पुरी:
800 सालों से भी ज्यादा पुराना माने जाने वाला यह मंदिर उड़ीसा में स्थित है। आपको बता दें जगन्नाथ मंदिर की महीमा देश में ही नहीं विश्व में भी प्रसिद्ध हैं, पुरी में बना जगन्नाथ मंदिर भारत में हिंदुओं के चार धामों में से एक है।
जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। इसी तरह मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है। इस चक्र को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी तरफ है जो इस मंदिर की आलोकिक महिमा को प्रदर्शित करता है।
आपको बता दें उड़ीसा के पुरी में स्थित इस मंदिर में भगवान कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं।जन्माष्टमी के दिन यहाँ विशेष रोनक देखने को मिलती है।
वो रातों-रात 'सिरी-कृष्ण' को उठाए हुए
बला की क़ैद से 'बसदेव' का निकल जाना
- फ़िराक़ गोरखपुरी
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