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ऑलंपिक में भारत का स्वर्ण काल लाने वाले हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के रोचक तथ्य

Kavishala LabsKavishala Labs August 29, 2021
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"ध्यानचंद क्रिकेट के रनों की भांति गोल बनाते है"

-सर डॉन ब्रेडमैन


हाॅकी के जादूगर

हाॅकी के जादूगर कहे जाने वाले सबसे बड़े नायक मेजर ध्यानचंद हाॅकी में अपने अविश्वसनीय प्रदर्शन से विश्व में नामी हैं।उनके बारे में यह कहा जाता है कि जब भी वह हॉकी स्टिक लेकर खेल के मैदान में गेंद के साथ दौड़ते थे तो ऐसा लगता था मानो गेंद उनके स्टिक से चुम्बक की तरह चिपक गई हो।

हॉलैंड का किस्सा इसी कारण से सुर्खियों में रहा जब लोगों ने इस अंदेशे के चलते ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तुड़वा दी थी। दावा किया जाता है कि मेजर ध्यानचंद के पास अगर एक बार गेंद चली जाती थी तो उसे छिन पाना नामुमकिन के बराबर था। 

गेंद पर उनकी ऐसे पकड़ के कारण उन्हें "दी विज़ार्ड" की उपमा दे दी गई थी। 13 मई 1926 को न्यूजीलैंड में उन्होंने अपना पहला मैच खेला था। 


ऑलंपिक में भारत का स्वर्ण काल

ध्यानचंद ने तीन बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया, और तीन स्वर्ण पदक दिलवाए थे,जिसके बाद हॉकी में भारत सबसे आगे रही और सर्वश्रेष्ठ हॉकी टीम के रूप में उभर गई थी। ये ऑलंपिक वर्ष 1928 में एम्स्टर्डम, 1932 में लॉस एंजिल्स और 1936 में बर्लिन में खेले गए थे। सर्वप्रथम 1928 में एम्सटर्डम में हुए अपने पहले ओलंपिक में ध्यान चंद ने सबसे ज्यादा 14 गोल कर गोल्ड मेडल दिलवाया।

ओलंपिक खेलों में स्वर्णिम सफलता दिलाने के साथ ही उनकी हॉकी ने एशियाई हाॅकी का दबदबा भी उतना ही कायम रखा। 

ऐसा अगर कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा कि मेजर ध्यानचंद से बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी आज तक दुनिया में नहीं हुआ है। 

ध्यानचंद ने 1926 से 1948 तक अपने करियर में 400 से अधिक अंतरराष्ट्रीय गोल और अपने पूरे करियर में लगभग एक हजार गोल किए हैं।

1965 में हॉकी को अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने के लिए उन्हें भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 


कैसे जुड़ा चंद

आपको बता दें मेजर ध्यानचंद का वास्तविक नाम ध्यानचंद नहीं बल्कि ध्यान सिंह था।अपने खेल को और निखारने के लिए वह ज्यादा से ज्यादा प्रैक्टिस किया करते थे। कई बार वे चांद की रौशनी में प्रैक्टिस करते नजर आ जाया करते थे जिसके कारण उनके नाम के साथ चंद जोड़ दिया गया, और वे ध्यानचंद के नाम से जाने,जाने लगे।

भारत के अलावा विश्व के अनेक दिग्गजों ने भी ध्यानचंद की प्रतिभा का लोहा माना है। जर्मनी के एक संपादक ने ध्यानचंद अविश्वसनीय खेल कला के बारे में कुछ इस तरह टिप्पणी की है-

"कलाई का एक घुमाव, आँखों देखी एक झलक, एक तेज मोड़, और फिर ध्यानचंद का जोरदार गोल"। 


जब ध्यानचंद ने ठुकराया हिटलर का ऑफर

ध्यानचंद का खेल इतना बेहतरीन था कि जो एक बार उन्हें खेलते देख ले वो उनके खेल का दिवाना हो जाए,चाहे वह हिटलर ही क्यों न हो ।4 अगस्त 1936 में खेला गया ओलिंपिक फाइनल जिसमें भारत और जर्मनी आमने-सामने थे।जर्मनी में खेले  जा रहे इस मैच में पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। कहा जाता है कि, जर्मनी के विशेषज्ञों ने पिच को जरूरत से ज्यादा गीला करावा दिया था जिससे  सस्ते जूते पहने हुए भारतीय खिलाड़ियों को दौड़ने और गोल करने में परेशानी हो और वो मैच आसानी से हार जाए। पर पिच की हालत देखकर ध्यानचंद ने अपने जूते उतारे दिए ताकि वे अच्छी तरह दौड़ सके, उसके बाद तो ध्यानचंद और उनकी  टीम ने ऐसा प्रदर्शन किया कि सब के होस उड़ गए। और मैच को अपने नाम किया।ऐसा कहा जाता है कि हिटलर ने उनके खेल से प्रभावित हो कर उन्हें फील्ड मार्शल बनाने का ऑफर दिया जिसे ध्यानचंद ने बड़ी विनम्रता से अस्वीकार कर दिया था, जो अपने देश के प्रति उनकी निष्ठा और भाव को दर्शाता हैये बहुत कम लोग जानते हैं कि ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना के एक स्पोर्ट्स क्लब में उनकी खास तरह की मूर्ति लगाई गई है ।यह किसी आम मुर्ति से बेहद अलग है, जिसमें ध्यानचंद के चार हाथ हैं।मेजर ध्यानचंद के नाम पर नई दिल्ली में एक स्टेडियम भी है। 


राष्ट्रीय खेल दिवस

हॉकी में फिरकी के इस जादूगर का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 29 अगस्त 1905 को हुआ था। 

उनके सम्मान में और खेल को प्रोत्साहन देने के लिए 29 अगस्त का दिन भारत हर वर्ष राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाता है। 

इस वर्ष ,यह दिन कई मायनों में और महत्वपूर्ण बन गया है, क्योंकि हालही में हुए टोक्यो ओलंपिक में भारत ने अब तक के अपने सर्वश्रेष्ठ, 7 ऑलंपिक पदक हासिल किए हैं।जिसमें भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल के लंबे इंतज़ार के बाद ओलंपिक के मुकाबले में कांस्य मेडल अपने नाम किया है। साथ ही भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी अपना शानदार प्रदर्शन किया है। 


खिलाड़ियों के लिए इस दिन के विशेष मायने हैं

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