
भारत २८ राज्यों से बना देश है जहाँ हर प्रदेश की अपनी भाषा अपनी संस्कृति है। भाषा और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से सबके अपने महत्त्व व् स्थान हैं। किसी भी भाषा की संस्कृति का आधार उस भाषा के साहित्य से भी कहीं न कहीं जुड़ा होता है जिसे जानने की आवश्यकता होती है। आज के हमारे इस लेख में हम हरयाणवी साहित्य की बात करेंगे। इस साहित्य के साहित्यकारों और उनकी लेखनी से हरयाणा साहित्य के समृद्धि को जानने का प्रयास करेंगे। वैसे तो १ नवम्बर १९६६ को हरयाणा की स्थापना हुई थी जिसे भाषायी आधार पर पूर्वी पंजाब से नये राज्य के रूप में बनाया गया परन्तु इसमें प्राचीन भारत की परंपराओं व लोककथाओं का भंडार है।
[हिम्मत का हो राम हिमाती, हिम्मत मतना हारै]
हिम्मत का हो राम हिमाती, हिम्मत मतना हारै
मनुष मति मंद तू...टेक
जै तू हिम्मत हार गया तै हिन्दुस्तान गुलाम रहैगा
गोरां के डंडा के नीचै न्यूहै पिटता चाम रहैगा
हिम्मत मतना हारे बहादुर तेरी मदद म्हं राम रहैगा
धरती और आकाश रहेंगे, जब तक तेरा नाम रहैगा
हिम्मत चीज बड़ी सै क्यूं ना भारत ने उभारै
काट दे फंद तू...
हिम्मत की इमदाद करै हर, सुणों खोल कै कान
हिम्मत हारे हर ना मिलते, न्यू कहते भगवान
हिम्मत के कारण सिद्ध होते हिम्मत बिना बिरान
हिम्मत मतना हारे बन्दे, चाहे चली जा जान
हिम्मत करकै नाम रटे जाओ, बिगड़े काम समारै
भज गोबिंद तू...
अंग्रेजां नै मजा चखादे, जयहिन्द की राखै मेर सै तूं
रफल, तोप और तेग चलाणी, जाणै सब हथफेर सै तूं
चुस्त और चालाक बहादुर, पट्टेबाज दिलेर सै तूं
मरणे का क्यूं फिकर करै सै भारत मां का शेर सै तूं
होज्या नै आजाद पड़ा क्यूं पांह पिंजरे मैं मारे
कैद में बंद तू...
सतगुरु मुंशीराम धोरै सिखणा ब्रह्म ज्ञान चाहिए
ढोलक और हरमूनिया बाजा साथ मैं सामान चाहिए
बोस की कहानी का इब करणा तनै बखान चाहिए
हाथ जोड़ कै लैक्चर रसीली सी जबान चाहिए
नेताजी का प्रचार जगत में करणा चाहिए सारै
घूम दयाचन्द तू…
-दयाचंद मायना
दयाचंद मायना हरियाणवी भाषा के प्रसिद्ध कवि थे जो हरियाणा के अब तक के महत्वपूर्ण कवियों और लोकगीत कलाकारों की श्रेणी में विद्यमान हैं। इनका जन्म 10 मार्च 1915 को हरियाणा के रोहतक जिले के मायना गांव में एक वाल्मीकि जाति परिवार में हुआ था। उन्होंने हरियाणवी संग और रागनी का बेहतरीन निर्माण किया, उनके काम ने अपने समय के ब्राह्मणवाद को चुनौती दी। कवी मायने ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर एक नाटक (किस्सा) लिखा था जो बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने 21 किसास (हरियाणवी में नाटक) और 150 से अधिक रागनिया लिखीं हैं। 20 January 1993 को इस महान कवि का निधन हो गया।
[लाड करण लगी मात, पूत की कौळी भरकै]
लाड करण लगी मात, पूत की कौळी भरकै
हुई आजादा शोक और भय से, गात म्हं खुशी हो गई ऐसे
जैसे, धन निधरन के लग्या हाथ, खुश हुए न्यौळी भरकै
आज वे परसन्न होगे हरि, आत्मा ठण्डी हुई मेरी
कद तेरी, चढ़ती देखूंगी बारात, बहू आवै रोळी भरकै
तेरे बिन अधम बीच लटकूं थी, नाग जैसे मणि बिन सिर पटकूं थी
पूत बिन भटकूं थी, दिन रात, आया सुख झोळी भरकै
बाजे राम चरण सिर डारै, भवानी सबके कारज सारै
मारै, नुगरयां कै गात, ज्ञान की गोळी भरकै
-बाजे भगत
बाजे भगत एक भारतीय साहित्यकार, कवि, रागनी लेखक, सांग कलाकार और हरियाणवी सांस्कृतिक कलाकार थे। कवि बाजे भगत जी सेन जाति के थे। हरियाणा में सबसे पहले पंडित लख्मीचंद और सेन बाजे भगत कविकार थे ये दोनों ही कवि एक दूसरे का साथ देते थे और सुंदर रागनी गाते थे जो हरयाणवी लोगो के बिच गए जाती हैं।
[सौदागर तेरै कीड़े पड़ियो दुखिया बीर सताई]
सौदागर तेरै कीड़े पड़ियो दुखिया बीर सताई
बेईमान कै दिन की खातिर ले कै चलल्या बुराई।टेक
कोए कर्म तै राज करै सै कोए दलै सै दाणा
कोए इन हाथां दान करै मोहताज मांग रह्या खाणा
अपणे मतलब का ना होता धन और रूप बिराणा
सोच समझ कै चाल दुष्ट सै धर्मराज घर जाणा
ऊंच नीच का ख्याल नहीं तूं लाग्या करण अंघाई।
पाप धर्म तोलण की खातर धर्मराज घर नरजा
कितै धर्म तुलै कितै पाप तुलै सै न्यारा न्यारा दर्जा
जित धर्म तुलै उड़ै सुरग मिलै तुलै पाप नरक मैं गिरज्या
जै इतनी कहे की भी ना मानै तै नाक डुबो कै मरज्या
मैं लागूं सूं बहाण तेरी तूं मेरा धर्म का भाई।
भले आदमी शुभ कर्मा तै भव सागर तर ज्यांगें
बुरे आदमी बेईमानी मैं सिर बदनामी धर ज्यांगें
भठियारी जै धमका दे सहज बात डर ज्यांगें
दो बालक मेरे याणे याणे रो रो कै मर ज्यांगें
तूं जहाज रोक दे मैं तलै उतरज्यां बहुत घणी दुःख पाई।
ढके ढकाए ढोल म्हारे ये नहीं उघड़ने चाहिए
बीर मर्द म्हारे दोनूं बेटे नहीं बिछड़ने चाहिए
पतिभ्रता के बोल क्रोध के पार लिकड़ने चाहिए
भठियारी कै और तेरै पापी कीड़े पड़ने चाहिए
मेहर सिंह कैह चुपका होज्या मरले परै कसाई।
-शहीद कवि मेहर सिंह
शहीद कवि मेहर सिंह दहिया जिन्हें आमतौर पर फौजी मेहर सिंह और जाट मेहर सिंह के नाम से जाना जाता है, एक प्रसिद्ध हरियाणवी कवि थे। उनका जन्म हरियाणा के सोनीपत जिले की खरखोदा तहसील के बरोना गांव में जाटों के दहिया वंश में हुआ था। हरियाणा के अलावा दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में आज भी उनकी रागनी लोकप्रिय है।
[इस भारत म्हं दुनिया तै एक ढंग देख लिया न्यारा]
इस भारत म्हं दुनिया तै एक ढंग देख लिया न्यारा
खाज्या घणा कबज होग्या एक भूखा मरै बेचारा
एक जणे की चढ़ी किराये कई कई बिल्डिंग कोठी
एक जणे नै मिलै रहण अनै कोन्या एक तमोटी
एक जणे की खा खा मेर्वे हुई दूंदड़ी मोटी
एक जणे नै पेट भराई कोन्या मिलती रोटी
एक जणा बैठा गद्दी पर दे रहा एक सहारा
एक जणे कै
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