
भारत की संस्कृति, सभ्यता और साहित्य की तो दूर-दूर तक सरहाना की जाती है। देश विदेश में भारतीय लोगों का काम हमेशा से ही चर्चित रहा है और एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों की सूची में एक नाम दर्ज हुआ है। भारतीय लेखिका और उपन्यासकार गीतांजलि श्री अपने उपन्यास 'रेत समाधि' के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर प्राइज प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। इस कहानी को अमेरिकन ट्रांसलेटर डेज़ी रॉकवेल ने मेल द्वारा ट्रांसलेट किया है जिसके बाद इस किताब का शीर्षक 'Tomb of Sand' रखा गया।
लंदन में गीतांजलि को इस पुरस्कार के साथ 50,000 पाउंड्स की इनामी राशी भी दी जाएगी।
एक 80 वर्ष की महिला जो अपने पति के निधन के बाद गहरे अवसाद में चली जाती है। बड़ी मुश्किल से जब वह इस अवसाद पर काबू पाती है तो ठान लेती है की जीवन में हुए सारे संघर्षों का सामना करेगी और इसलिए वह पाकिस्तान जाती है, जहां बटवारे के वक्त उसे बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। इन्हीं चुनौतियों से फिर से एक बार लड़ने के लिए वह महिला तैयार होती है। यह कहानी आपको सिखाएगी आत्मविश्वास की ताकत क्या होती है, चाहे कोई भी उम्र हो चुनौतियों से सामना करने का कोई सही वक्त नहीं होता।
भारत के कई प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने इस पुस्तक की बहुत सराहना की है और लेखक ने पुरस्कार के प्रति अपनी खुशी और आभार व्यक्त करते हुए कहा, "मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह कर सकती हूं। कितनी बड़ी मान्यता है मैं चकित, प्रसन्न, सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूं।"
जजेज़ के पैनल में बैठे फ्रैंक वाइन ने बताया कि काफी चर्चा और विवाद के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे की
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments