
क्या मोल लग रहा है शहीदों के ख़ून का
मरते थे जिन पे हम वो सज़ा-याब क्या हुए
-साहिर लुधियानवी
हालही में 11 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में हुए आतंकवाद निरोधी अभियान में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ हुई जिसमें एक 'जूनियर कमीशंड अधिकारी' (जेसीओ) सहित सेना के पांच जवान शहीद हो गए।रक्षा विभाग के एक प्रवक्ता ने बताया कि सेना को आतंकियों की मौजूदगी की जानकारी मिली थी जिसके बाद सुरनकोट के पास एक गांव में तड़के एक अभियान शुरू किया गया था।
देश की रक्षा के लिए अपने प्राणो की आहुति दे देने वाले ऐसे वीर जवानो को हमारा शत् शत् नमन। यूँ तो इनकी देश के प्रति प्रेम को केवल कुछ शब्दों में समेत पाना इतना सरल नहीं परन्तु कई कविताएं लिखी गयीं हैं जो इन वीरों के देश के प्रति अनन्य प्रेम को दिखती हैं।
तो आईये पढ़ते हैं इन वीर जवानो पर लिखी कविताएं :
जब तिरंगे में लिपटे शहीद जवानों के पार्थिव शरीर उनके घर के देहलीज़ पर आते हैं तब वो दृश्य कितना कारुणिक होता है ,क्यूंकि देश के लिए अपना सर्वोच्य लुटा देने वाला वो जवान वास्तव में किसी का पुत्र किसी का पति और किसी का पिता है ,कितने ही रिश्ते उस रोज बिलक-बिलक कर रो रहे होते हैं ,किसी की गोद,किसी की मांग सुनी हो जाती है,उसी करुणा व पीड़ा को वयक्त करती यह कविता हरिओम पंवार द्वारा लिखी गयी थी जो आपके सामने प्रस्तुत है:
मैं केशव का पाञ्चजन्य भी गहन मौन में खोया हूँ
उन बेटों की आज कहानी लिखते-लिखते रोया हूँ
जिस माथे की कुमकुम बिन्दी वापस लौट नहीं पाई
चुटकी, झुमके, पायल ले गई कुर्बानी की अमराई
कुछ बहनों की राखियां जल गई हैं बर्फीली घाटी में
वेदी के गठबन्धन खोये हैं कारगिल की माटी में
पर्वत पर कितने सिन्दूरी सपने दफन हुए होंगे
बीस बसंतों के मधुमासी जीवन हवन हुए होंगे
टूटी चूड़ी, धुला महावर, रूठा कंगन हाथों का
कोई मोल नहीं दे सकता वासन्ती जज्बातों का
जो पहले-पहले चुम्बन के बाद लाम पर चला गया
नई दुल्हन की सेज छोड़कर युद्ध-काम पर चला गया
उनको भी मीठी नीदों की करवट याद रही होगी
खुशबू में डूबी यादों की सलवट याद रही होगी
उन आँखों की दो बूंदों से सातों सागर हारे हैं
जब मेंहदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे हैं
गीली मेंहदी रोई होगी छुपकर घर के कोने में
ताजा काजल छूटा होगा चुपके-चुपके रोने में
जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आँगन में
शायद दूध उतर आया हो बूढ़ी माँ के दामन में
वो विधवा पूरी दुनिया का बोझा सिर ले सकती है
जो अपने पति की अर्थी को भी कंधा दे सकती है
मैं ऐसी हर देवी के चरणों में शीश झुकाता हूँ
इसीलिए मैं कविता को हथियार बनाकर गाता हूँ
जिन बेटों ने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से
उनकी कोई मांग नहीं है दिल्ली के कानूनों से
जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव तारा बन जाता है
उस कुर्बानी के दीपक से सूरज भी शरमाता है
गर्म दहानों पर तोपों के जो सीने अड़ जाते हैं
उनकी गाथा लिखने को अम्बर छोटे पड़ जाते हैं
उनके लिए हिमालय कंधा देने को झुक जाता है
कुछ पल सागर की लहरों का गर्जन रुक जाता है
उस सैनिक के शव का दर्शन तीरथ-जैसा होता है
चित्र शहीदों का मन्दिर की मूरत जैसा होता है।
-हरिओम पंवार
वीरों को नमन करती यह कविता कुमार विश्वास द्वारा लिखी गयी है जो बताती है कि शहीद हुआ सैनिक सदैव याद किया जाता है और अमर हो जाता है। जिसपर उसका पिता सदैव गर्व करता है।
कुमार विश्वास द्वारा लिखी यह कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है :
है नमन उनको कि जो देह को अमरत्व देकर
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं
पिता जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुलवंश माथा
मां वही जो दूध से इस देश की रज तौल आई
बहन जिसने सावनों में हर लिया पतझर स्वयं ही
हाथ ना उलझें कलाई से जो राखी खोल लाई
बेटियां जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रहीं थीं
पिता तुम पर गर्व है चुपचाप जाकर बोल आये
है नमन उस देहरी को जहां तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय ....
हमने लौटाये सिकन्दर सर झुकाए मात खाए
हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयां है
सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या अजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कौतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों की प्रतीक्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाओं
देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
है नमन उनको कि जिनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं
कंचनी तन, चन्दनी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय l
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये
-कुमार विश्वास
रामगोपाल 'रुद्र' द्वारा लिखी शहीदों को समर्पण कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है :
एक ही दिया, सनेह से भरा;
प्रेम का प्रकाश, प्रेम से धरा;
झिलमिला हवा को तिलमिला रहा;
ज्योति का निशान जो हिला रहा;
मुस्कुरा रहा है अंधकार पर!
यह मज़ार है किसी शहीद का,
दर्शनीय था जो चाँद ईद का;
देश का सपूत था, गुमान था,
सत्य का स्वरूप, नौजवान था;
जो चला किया सदा दुधार पर!
देश का दलन, दुसह दुराज वह,
वे कुरीतियाँ, दलित समाज वह,
वे गुलामियाँ जो पीसती रहीं,
वे अनीतियाँ जो टीसती रहीं,
वह दमन क चक्र अश्रुधार पर
देख आँख में लहू उतर गया,
पंख चैन के कोई कुतर गया;
धधक उठी आग अंग-अंग में,
खौल उठा विष उमंग-उमंग में;
चल पड़ा अमर, अमर पुकार पर!
वह जिधर चला, जवानियाँ चलीं,
बाढ़ की विकल रवानियाँ चलीं,
नाश की नई निशानियाँ चलीं,
इन्कलाब की कहानियाँ चलीं;
फूल के चरण चले अँगार पर!
दम्भ का जहाँ-जहाँ पड़ाव था,
सत्य से जहाँ-जहाँ दुराव था,
वह चला कि अग्निबाण मारता,
पाप की अटा-अटा उजाड़ता,
वज्र बन गिरा, गिरे विचार पर!
आज देश के उसी सपूत की,
राष्ट्र के शहीद, अग्रदूत की
शान्ति की मशाल जो लिये चला
क्रांति के कमाल जो किये चला
लौ जुगा रहा दिया मज़ार पर!
-रामगोपाल 'रुद्र
अख़लाक़ बन्दवी द्वारा लिखी शहीदों को समर्पित कविता :
फ़ौजियों के सर तो दुश्मन के सिपाही ले गए
हाथ जो क़ीमत लगी ज़िल्ल-ए-इलाही ले गए
जुर्म मेरा सिर्फ़ इतना था कि मैं मुजरिम न था
क़ैद तक मुझ को सुबूत-ए-बे-गुनाही ले गए
अब वही दुनिया में ठहरे अम्न-ए-आलम के अमीं
जो अमाँ की जा तक असबाब-ए-तबाही ले गए
शिकवा-ए-जलवा-नुमाई सिर्फ़ उन के लब पे है
जो तिरी महफ़िल में अपनी कम-निगाही ले गए
तुम हरम से ले गए शब की सियाही और हम
मय-कदे से भी ज़िया-ए-सुब्ह-गाही ले गए
मैं इधर 'अख़लाक़' की तक़्सीम में मसरूफ़ था
लोग उधर मेरी अदा-ए-कज-कुलाही ले गए
-अख़लाक़ बन्दवी
न इंतिज़ार करो इनका ऐ अज़ा-दारो
शहीद जाते हैं जन्नत को घर नहीं आते
-साबिर ज़फ़र
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