शहीदों को समर्पित प्रसिद्ध कवियों की कविताएं!'s image
Article8 min read

शहीदों को समर्पित प्रसिद्ध कवियों की कविताएं!

Kavishala LabsKavishala Labs October 13, 2021
Share1 Bookmarks 214200 Reads2 Likes


क्या मोल लग रहा है शहीदों के ख़ून का  

मरते थे जिन पे हम वो सज़ा-याब क्या हुए 

-साहिर लुधियानवी


हालही में 11 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में हुए आतंकवाद निरोधी अभियान में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ हुई जिसमें एक 'जूनियर कमीशंड अधिकारी' (जेसीओ) सहित सेना के पांच जवान शहीद हो गए।रक्षा विभाग के एक प्रवक्ता ने बताया कि सेना को आतंकियों की मौजूदगी की जानकारी मिली थी जिसके बाद सुरनकोट के पास एक गांव में तड़के एक अभियान शुरू किया गया था। 

देश की रक्षा के लिए अपने प्राणो की आहुति दे देने वाले ऐसे वीर जवानो को हमारा शत् शत् नमन। यूँ तो इनकी देश के प्रति प्रेम को केवल कुछ शब्दों में समेत पाना इतना सरल नहीं परन्तु कई कविताएं लिखी गयीं हैं जो इन वीरों के देश के प्रति अनन्य प्रेम को दिखती हैं। 


तो आईये पढ़ते हैं इन वीर जवानो पर लिखी कविताएं :



जब तिरंगे में लिपटे शहीद जवानों के पार्थिव शरीर उनके घर के देहलीज़ पर आते हैं तब वो दृश्य कितना कारुणिक होता है ,क्यूंकि देश के लिए अपना सर्वोच्य लुटा देने वाला वो जवान वास्तव में किसी का पुत्र किसी का पति और किसी का पिता है ,कितने ही रिश्ते उस रोज बिलक-बिलक कर रो रहे होते हैं ,किसी की गोद,किसी की मांग सुनी हो जाती है,उसी करुणा व पीड़ा को वयक्त करती यह कविता हरिओम पंवार द्वारा लिखी गयी थी जो आपके सामने प्रस्तुत है:


मैं केशव का पाञ्चजन्य भी गहन मौन में खोया हूँ

उन बेटों की आज कहानी लिखते-लिखते रोया हूँ


जिस माथे की कुमकुम बिन्दी वापस लौट नहीं पाई

चुटकी, झुमके, पायल ले गई कुर्बानी की अमराई


कुछ बहनों की राखियां जल गई हैं बर्फीली घाटी में

वेदी के गठबन्धन खोये हैं कारगिल की माटी में


पर्वत पर कितने सिन्दूरी सपने दफन हुए होंगे

बीस बसंतों के मधुमासी जीवन हवन हुए होंगे


टूटी चूड़ी, धुला महावर, रूठा कंगन हाथों का

कोई मोल नहीं दे सकता वासन्ती जज्बातों का


जो पहले-पहले चुम्बन के बाद लाम पर चला गया

नई दुल्हन की सेज छोड़कर युद्ध-काम पर चला गया


उनको भी मीठी नीदों की करवट याद रही होगी

खुशबू में डूबी यादों की सलवट याद रही होगी


उन आँखों की दो बूंदों से सातों सागर हारे हैं

जब मेंहदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे हैं


गीली मेंहदी रोई होगी छुपकर घर के कोने में

ताजा काजल छूटा होगा चुपके-चुपके रोने में


जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आँगन में

शायद दूध उतर आया हो बूढ़ी माँ के दामन में


वो विधवा पूरी दुनिया का बोझा सिर ले सकती है

जो अपने पति की अर्थी को भी कंधा दे सकती है

मैं ऐसी हर देवी के चरणों में शीश झुकाता हूँ

इसीलिए मैं कविता को हथियार बनाकर गाता हूँ


जिन बेटों ने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से

उनकी कोई मांग नहीं है दिल्ली के कानूनों से


जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव तारा बन जाता है

उस कुर्बानी के दीपक से सूरज भी शरमाता है


गर्म दहानों पर तोपों के जो सीने अड़ जाते हैं

उनकी गाथा लिखने को अम्बर छोटे पड़ जाते हैं


उनके लिए हिमालय कंधा देने को झुक जाता है

कुछ पल सागर की लहरों का गर्जन रुक जाता है


उस सैनिक के शव का दर्शन तीरथ-जैसा होता है

चित्र शहीदों का मन्दिर की मूरत जैसा होता है।

-हरिओम पंवार



वीरों को नमन करती यह कविता कुमार विश्वास द्वारा लिखी गयी है जो बताती है कि शहीद हुआ सैनिक सदैव याद किया जाता है और अमर हो जाता है। जिसपर उसका पिता सदैव गर्व करता है।


कुमार विश्वास द्वारा लिखी यह कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है :


है नमन उनको कि जो देह को अमरत्व देकर

इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं 


है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय 

जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं 


पिता जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुलवंश माथा 

मां वही जो दूध से इस देश की रज तौल आई 


बहन जिसने सावनों में हर लिया पतझर स्वयं ही 

हाथ ना उलझें कलाई से जो राखी खोल लाई


बेटियां जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रहीं थीं 

पिता तुम पर गर्व है चुपचाप जाकर बोल आये 


है नमन उस देहरी को जहां तुम खेले कन्हैया 

घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं 


है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय ....

हमने लौटाये सिकन्दर सर झुकाए मात खाए 


हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है 

नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी 


उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयां है

सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे 


शीश देने की कला में क्या अजब है क्या नया है&nbs

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts