“अन्त में कई वर्षों के बाद डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने अपने विवाह के अवसर पर मुझसे अपने कवि मित्र सुमित्रानन्दन जी का परिचय कराया तब मुझे अपने भ्रम पर इतनी हँसी आई कि मैं शिष्टाचार के प्रदर्शन के लिए भी वहाँ खड़ी न रह सकी।”
- महादेवी वर्मा
किसी के लिंग का पता लगाना भारत देश में बहुत सरल कार्य है। इस देश में मात्र नाम ज्ञात होने से ही कई बार मनुष्य के व्यक्तित्व का भी अनुमान लगा लिया जाता है। हांलाकि ये उतना सहज भी नहीं क्यूंकि कई बार केवल नाम से लिंग का निष्कर्ष निकाल लेना भ्रम भी हो सकता है। आज अपने इस लेख में हम ऐसे ही एक किस्से का ज़िक्र करने वाले हैं जब छायावाद युग के दो प्रमुख सतम्भ महादेवी वर्मा और सुमित्रानंदन पंत की भेंट पहली बार एक कार्यक्रम में हुई।
“अन्त में कई वर्षों के बाद डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने अपने विवाह के अवसर पर मुझसे अपने कवि मित्र सुमित्रानन्दन जी का परिचय कराया तब मुझे अपने भ्रम पर इतनी हँसी आई कि मैं शिष्टाचार के प्रदर्शन के लिए भी वहाँ खड़ी न रह सकी।”
अपनी किताब मोडेरेटर में महादेवी वर्मा यह लिखती हैं कि सुमित्रानंदन पंत से मिलने से पहले उनके महिला होने का भ्रम रहा। जिसके चलते वे अपनी हंसी को रोक ही नहीं पाई क्यूंकि उनके मन में पंत की छवि थी वो कुछ इस प्रकार थी "आकण्ठ अवगुण्ठित करती हुई हल्की पीताभ-सी चादर, कंधों पर लहराते हुए कुछ सुनहरे-से केश, तीखे नक्श और गौर वर्ण के समीप पहुँचा हुआ गेहुँआ रंग, सरल दृष्टि की सीमा बनाने के लिए लिखी हुई-सी भवें, खिंचे हुए-से ओंठ, कोमल पतली उँगलियों वाले सुकुमार हाथ……." परन्तु पंत जी महिला नहीं बल्कि पुरुष थे
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