भारतीय पत्रकार : जिन्होंने मीडिया के साथ-साथ लेखन कार्य में भी अपना हुनर दिखाया!
October 12, 2021पत्रकार जो हैं अच्छे कवि भी!
1. माखनलाल चतुर्वेदी :- इनका जन्म 1889 को बवई, उत्तर प्रदेश में हुआ। इनकी मृत्यु 30 जनवरी 1968 में हुई। इन्हें 'पदम विभूषण ','साहित्य अकैडमी पुरस्कार ' मिला। प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने घर में ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया। इसके बाद इन्होंने खंडवा से 'कर्मवीर ' नामक साप्ताहिक पत्र निकालना शुरू किया। उन्हें 'एक भारतीय आत्मा ' से भी पुकारा जाता है।
प्रस्तुत है उनकी सबसे सुप्रसिद्ध कविता " पुष्प " की कुछ पंक्तियां :
मुझे पुष्प तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि का पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।
उनकी अन्य, कविताओं में से एक कविता " सागर खड़ा बेड़ियाँ तोड़े " की भी कुछ पंक्तियां :
आज हिमालय का सर उज्ज्वल,
सागर खड़ा बेड़ियाँ तोड़े,
कौन तरुण जो उठे,
समय के घोड़े का रथ बाएँ मोड़े,
आई है व्रत ठान लाड़ली,
आज नर्मदा के स्वर बोली,
सोचा था वसंत आएगा,
और हर्ष ले आया होली।
2. रवीश कुमार :- इनका जन्म 5 दिसंबर 1974 को मोतिहारी, बिहार में हुआ। वह एक न्यूज़ एंकर और एन.डी.टी.वी. पत्रकार भी है। इन्हें ' गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार ', 'रेमन मैगसेसे पुरस्कार ', 'रामनाथ गोयंका पुरस्कार ' मिला। इन्होंने "बोलना हीं है ", "द फ्री वॉइस :ऑन डेमोक्रेसी ", "कल्चर एंड द नेशन "। " रवीश पनती " कुल 5 पुस्तक लिखी है।
प्रस्तुत है " बोलना हीं है " की कुछ पंक्तियां :
लोगों ने समझा कि मीडिया बता रहा है,
लेकिन मीडिया तो अब वही बताता है,
जो उसे बताने के लिए बताया जाता है।
सत्ता को पता है,
कि जब लोग जानेंगे, तभी बोलेंगे।
जब बोलेंगे, तभी किसी को सुनाएंगे।
जब कोई सुनेगा, तभी उस पर बोलेगा।।
3. विष्णु खरे :- इनका जन्म 9 फरवरी 1940 को छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में हुआ। यह आर्मी अफसर रह चुके हैं। इनकी मृत्यु 19 सितंबर 2018 को हुई। इन्हें 'हिंदी अकैडमी साहित्य ' सम्मान मिला है। दिल्ली व मध्य प्रदेश के कई महाविद्यालयों में अध्यापन किया। फिर लघु पत्रिका 'व्यास ' का संपादन किया।
प्रस्तुत है अकेला आदमी की कुछ पंक्तियां :
व्यस्त होने के,
कई तरीके इजाद करता है,
अकेला आदमी,
बक्सों में भर कागजों को सहेजना,
उनमें सबसे जटिल है।।
उनकी अन्य, कविताओं में से एक कविता " जो मार खा रोईं नहीं " की भी कुछ पंक्तियां :
तिलक मार्ग थाने के सामने,
जो बिजली का एक बड़ा बक्स है,
उसके पीछे नाली पर बनी झुग्गी का वाक़या है यह,
चालीस के क़रीब उम्र का बाप,
सूखी साँवली लंबी-सी काया परेशान बेतरतीब बढ़ी दाढ़ी,
अपने हाथ में एक पतली हरी डाली लिए खड़ा हुआ,
नाराज़ हो रहा था अपनी,
पाँच साल और सवा साल की बेटियों पर,
जो चुपचाप उसकी तरफ़ ऊपर देख रही थीं,
ग़ु्स्सा बढ़ता गया बाप का,
पता नहीं क्या हो गया था बच्चियों से,
कु्त्ता खाना ले गया था,
दूध दाल आटा चीनी तेल केरोसीन में से,
क्या घर में था जो बगर गया था,
या एक या दोनों सड़क पर मरते-मरते बची थीं,
जो भी रहा हो तीन बेंतें लगी बड़ी वाली को पीठ पर,
और दो पड़ीं छोटी को ठीक सर पर,
जिस पर मुंडन के बाद छोटे भूरे बाल आ रहे थे,
बिलबिलाई नहीं बेटियाँ एकटक देखती रहीं बाप को तब भी ,
जो अंदर जाने के लिए धमका कर चला गया,
उसका कहा मानने से पहले,
बेटियों ने देखा उसे,
प्यार, करुणा और उम्मीद से,
जब तक वह मोड़ पर ओझल नहीं हो गया।।
4. मंगलेश डबराल :- इनका जन्म 16 मई 1948 को हुआ और देहांत 9 दिसंबर 2020 को हुआ। इनका जन्म टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ। भारत भवन से प्रकाशित साहित्य त्रैमासिक 'पूर्वाग्रह ' में सहायक संपादक रहे। फिर 'अमृत प्रभात ' में भी काम किया। फिर 'जनसत्ता ' में साहित्य संपादक का पद संभाला। इन्होंने काव्य रचना भी की। उन्होंने "पहाड़ पर लालटेन", "घर का रास्ता", "हम तो देखते हैं", "लेखक की रोटी", इत्यादि लिखा।
प्रस्तुत है उनकी सबसे सुप्रसिद्ध कविता " गुमशुदा " की कुछ पंक्तियां :
शहर के पेशाबघरों और अन्य लोकप्रिय जगहों में,
उन गुमशुदा लोगों की तलाश के पोस्टर,
अब भी चिपके दिखते हैं,
जो कई बरस पहले दस या बारह साल की उम्र में,
बिना बताए घरों के निकले थे,
पोस्टरों के अनुसार उनका क़द मँझोला है,
रंग गोरा नहीं गेहुँआ या साँवला है,
वे हवाई चप्पल पहने हैं,
उनके चेहरे पर किसी चोट का निशान है,
और उनकी माँएँ उनके बग़ैर रोती रहती हैं,
पोस्टरों के अंत में यह आश्वासन भी रहता है,
कि लापता की ख़बर देने वाले को मिलेगा,
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