
भारतीय पत्रकार : जिन्होंने मीडिया के साथ-साथ लेखन कार्य में भी अपना हुनर दिखाया!

पत्रकार जो हैं अच्छे कवि भी!
1. माखनलाल चतुर्वेदी :- इनका जन्म 1889 को बवई, उत्तर प्रदेश में हुआ। इनकी मृत्यु 30 जनवरी 1968 में हुई। इन्हें 'पदम विभूषण ','साहित्य अकैडमी पुरस्कार ' मिला। प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने घर में ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया। इसके बाद इन्होंने खंडवा से 'कर्मवीर ' नामक साप्ताहिक पत्र निकालना शुरू किया। उन्हें 'एक भारतीय आत्मा ' से भी पुकारा जाता है।
प्रस्तुत है उनकी सबसे सुप्रसिद्ध कविता " पुष्प " की कुछ पंक्तियां :
मुझे पुष्प तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि का पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।
उनकी अन्य, कविताओं में से एक कविता " सागर खड़ा बेड़ियाँ तोड़े " की भी कुछ पंक्तियां :
आज हिमालय का सर उज्ज्वल,
सागर खड़ा बेड़ियाँ तोड़े,
कौन तरुण जो उठे,
समय के घोड़े का रथ बाएँ मोड़े,
आई है व्रत ठान लाड़ली,
आज नर्मदा के स्वर बोली,
सोचा था वसंत आएगा,
और हर्ष ले आया होली।
2. रवीश कुमार :- इनका जन्म 5 दिसंबर 1974 को मोतिहारी, बिहार में हुआ। वह एक न्यूज़ एंकर और एन.डी.टी.वी. पत्रकार भी है। इन्हें ' गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार ', 'रेमन मैगसेसे पुरस्कार ', 'रामनाथ गोयंका पुरस्कार ' मिला। इन्होंने "बोलना हीं है ", "द फ्री वॉइस :ऑन डेमोक्रेसी ", "कल्चर एंड द नेशन "। " रवीश पनती " कुल 5 पुस्तक लिखी है।
प्रस्तुत है " बोलना हीं है " की कुछ पंक्तियां :
लोगों ने समझा कि मीडिया बता रहा है,
लेकिन मीडिया तो अब वही बताता है,
जो उसे बताने के लिए बताया जाता है।
सत्ता को पता है,
कि जब लोग जानेंगे, तभी बोलेंगे।
जब बोलेंगे, तभी किसी को सुनाएंगे।
जब कोई सुनेगा, तभी उस पर बोलेगा।।
3. विष्णु खरे :- इनका जन्म 9 फरवरी 1940 को छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में हुआ। यह आर्मी अफसर रह चुके हैं। इनकी मृत्यु 19 सितंबर 2018 को हुई। इन्हें 'हिंदी अकैडमी साहित्य ' सम्मान मिला है। दिल्ली व मध्य प्रदेश के कई महाविद्यालयों में अध्यापन किया। फिर लघु पत्रिका 'व्यास ' का संपादन किया।
प्रस्तुत है अकेला आदमी की कुछ पंक्तियां :
व्यस्त होने के,
कई तरीके इजाद करता है,
अकेला आदमी,
बक्सों में भर कागजों को सहेजना,
उनमें सबसे जटिल है।।
उनकी अन्य, कविताओं में से एक कविता " जो मार खा रोईं नहीं " की भी कुछ पंक्तियां :
तिलक मार्ग थाने के सामने,
जो बिजली का एक बड़ा बक्स है,
उसके पीछे नाली पर बनी झुग्गी का वाक़या है यह,
चालीस के क़रीब उम्र का बाप,
सूखी साँवली लंबी-सी काया परेशान बेतरतीब बढ़ी दाढ़ी,
अपने हाथ में एक पतली हरी डाली लिए खड़ा हुआ,
नाराज़ हो रहा था अपनी,
पाँच साल और सवा साल की बेटियों पर,
जो चुपचाप उसकी तरफ़ ऊपर देख रही थीं,
ग़ु्स्सा बढ़ता गया बाप का,
पता नहीं क्या हो गया था बच्चियों से,
कु्त्ता खाना ले गया था,
दूध दाल आटा चीनी तेल केरोसीन में से,
क्या घर में था जो बगर गया था,
या एक या दोनों सड़क पर मरते-मरते बची थीं,
जो भी रहा हो तीन बेंतें लगी बड़ी वाली को पीठ पर,
और दो पड़ीं छोटी को ठीक सर पर,
जिस पर मुंडन के बाद छोटे भूरे बाल आ रहे थे,
बिलबिलाई नहीं बेटियाँ एकटक देखती रहीं बाप को तब भी ,
जो अंदर जाने के लिए धमका कर चला गया,
उसका कहा मानने से पहले,
बेटियों ने देखा उसे,
प्यार, करुणा और उम्मीद से,
जब तक वह मोड़ पर ओझल नहीं हो गया।।
4. मंगलेश डबराल :- इनका जन्म 16 मई 1948 को हुआ और देहांत 9 दिसंबर 2020 को हुआ। इनका जन्म टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ। भारत भवन से प्रकाशित साहित्य त्रैमासिक 'पूर्वाग्रह ' में सहायक संपादक रहे। फिर 'अमृत प्रभात ' में भी काम किया। फिर 'जनसत्ता ' में साहित्य संपादक का पद संभाला। इन्होंने काव्य रचना भी की। उन्होंने "पहाड़ पर लालटेन", "घर का रास्ता", "हम तो देखते हैं", "लेखक की रोटी", इत्यादि लिखा।
प्रस्तुत है उनकी सबसे सुप्रसिद्ध कविता " गुमशुदा " की कुछ पंक्तियां :
शहर के पेशाबघरों और अन्य लोकप्रिय जगहों में,
उन गुमशुदा लोगों की तलाश के पोस्टर,
अब भी चिपके दिखते हैं,
जो कई बरस पहले दस या बारह साल की उम्र में,
बिना बताए घरों के निकले थे,
पोस्टरों के अनुसार उनका क़द मँझोला है,
रंग गोरा नहीं गेहुँआ या साँवला है,
वे हवाई चप्पल पहने हैं,
उनके चेहरे पर किसी चोट का निशान है,
और उनकी माँएँ उनके बग़ैर रोती रहती हैं,
पोस्टरों के अंत में यह आश्वासन भी रहता है,
कि लापता की ख़बर देने वाले को मिलेगा,
यथासंभव उचित ईनाम,
तब भी वे किसी की पहचान में नहीं आते,
पोस्टरों में छपी धुँधली तस्वीरों से,
उनका हुलिया नहीं मिलता,
उनकी शुरुआती उदासी पर,
अब तकलीफ़ें झेलने की ताब है,
शहर के मौसम के हिसाब से बदलते गए हैं उनके चेहरे,
कम खाते कम सोते कम बोलते,
लगातार अपने पते बदलते,
सरल और कठिन दिनों को एक जैसा बिताते,
अब वे एक दूसरी ही दुनिया में हैं,
कुछ कुतूहल के साथ,
अपनी गुमशुदगी के पोस्टर देखते हुए,
जिन्हें उनके परेशान माता-पिता जब-तब छपवाते रहते हैं,
जिनमें अब भी दस या बारह,
लिखी होती हैं उनकी उम्र।
5. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन :- इनका जन्म 7 मार्च 1911 को कसया कुशीनगर को हुआ। इनकी मृत्यु 4 अप्रैल 1987 को हुई। सच्चिदानंद 'अज्ञेय' को आधुनिक काव्य जगत में 'प्रयोगवाद' के प्रवर्तक एवं प्रसारक के रूप में जाना जाता है। इनका बचपन पिता के तबादलों के कारण लखनऊ, कश्मीर, नालंदा, पटना, आदि स्थानों पर बिताया। इन्हें चित्रकला, फोटोग्राफी, पर्वतारोहण,आदि में भी रुचि थी।
प्रस्तुत है उनकी सबसे सुप्रसिद्ध कविता "अरे ! ऋतुराज का आ गया !" की कुछ पंक्तियां :
शिशिर ने पहन लिया, बसंत का दुकूल।
गंध बह उठ रहा पराग धूल, झूले काहे का किरीट।
धारे बने देवदूत, पीत वसन दमक रहे।
तिरिस्कृति बबूल, अरे ! ऋतुराज आ गया!!
6. बरखा दत्त :- इनका जन्म 18 दिसंबर 1971 की नई दिल्ली में हुआ। इन्होंने 'कोलंबिया यूनिवर्सिटी ग्रैजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म ' से की। "आई.टी.ए. पुरस्कार" से इनको सर्वश्रेष्ठ एंकर टॉक-चैट शो का भी मिला। "पदम श्री पुरस्कार" भी मिला। 'वी द पीपल ' टी.वी. शो भी किया। उनकी किताब "दिस अंकूट लैंड : स्टोरीज फ्रॉम इंडिया फॉल्ट लाइंस" है। यह समान 'आचार संहिता ' की अवधारणा का समर्थन करती है। बरखा जी ने "ट्रिपल तलाक " और "मुस्लिम पितृ सत्ता " के खिलाफ भी अपनी राय व्यक्त की है।
प्रस्तुत है उनकी किताब की कुछ पंक्तियां :
द सनलेस विंटर, इन दिसंबर 2012
वेन द कोल्ड बिट हार्ड एंड द स्काई टर्न्ड ग्रे विद स्मॉग,
सिटीजम्स लिट्रली टुक कंट्रोल ऑफ द कैपिटल्स किंग्स वे,
"एस द ब्रिटिश यूज्ड टू कॉल ईट",
"राजपथ" एस ईट इस नाऊ नॉन हेड बिकम ' जनपथ ',
इन द मेटाफोरिकल ज्योग्राफी मैप्ड बाय पॉपुलर एंगर।
7. उदय प्रकाश :- इनका जन्म 1 जनवरी 1952 को सीतापुर, मध्यप्रदेश में हुआ। इन्होंने विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। हिंदी साहित्य में डिग्री ली तथा सौगर विश्वविद्यालय से गोल्ड प्राप्त किया। पी.टी.आई टी.वी. कॉन्सेप्ट और स्पेशल डिपार्टमेंट के चीफ बने। बेंगलुरु में एक मासिक अंग्रेजी भाषा की पत्रिका "एमिनेंट " के संपादक बने। इनकी कविता संग्रह में 'ध्वनि', 'अक्टूबर की रात', 'एक नियमावली', 'भाषा' शामिल है।
प्रस्तुत है उनकी सबसे सुप्रसिद्ध कविता " सुनो कारीगर " की कुछ पंक्तियां :
यह कच्ची-कमजोर सूत-सी नींद नहीं,
जो अपने आप टूटती है।
रोज-रोज की दारुण विपत्तियां है,
जो आंखें खोल है अचानक।
सुनो बहुत चुपचाप पाव से,
चला आता है कोई दुख।
8. पवन करण :- इनका जन्म 18 जून 1964 ग्वालियर, मध्यप्रदेश में हुआ। 1980 के आसपास इन्होंने लेखन कार्य शुरू किया। स्थानीय समाचार पत्र में इनकी कविताएं प्रकाशित होने लगी। 1992 दो प्रमुख समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के में प्रकाशित होने लगी। यह 'नवभारत'और 'नई दुनिया' में सरकारी कर्मचारी, संपादक के रूप में कार्य कर चुके हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में बताया है, कि कैसे महिलाएं पुरुषों द्वारा किए गए शोषण और उत्पीड़न से पीड़ित है। 'स्त्री मेरे भीतर' वह कविता है जो पाठक और समीक्षकों के बीच बहस का विषय बन गई थी।
प्रस्तुत है उनकी सबसे कविता " प्यार में डूबी मां " की कुछ पंक्तियां :
पिता, तुम्हारे जाने के बाद, कितने बरस,
कितनी अकेली, कितनी उदास रही माँ,
तुम इस तरह कैसे छोड़कर चले गए उसे,
क्या तुम्हें माँ से अधिक प्यार नहीं था।
9. रविंद्र प्रभात :- इनका जन्म 5 अप्रैल 1969 को महिंदवाड़ा, बिहार में हुआ था। यह एक हिंदी उपन्यासकार, पत्रकार, कवि, व लघु कहानी लेखक भी है। एक संपादक, स्क्रीनप्ले, लेखक के रूप में इन्होंने काम किया है। परंतु, व्यंग्य और गजल में प्रमुख उपाधि उपलब्धियां है। व्यंग पर आधारित उनका साहित्यिक स्तंभ सोने "चौबे जी की चौपाल " काफी लोकप्रिय रहा।
प्रस्तुत है उनकी सबसे सुप्रसिद्ध कविता " हर शाख पर उल्लू बैठा है " की कुछ पंक्तियां :
जिन लोगों से यह आशा की जाती थी, कि वह अच्छे होंगे। उनके भी कारनामे आजकल कभी ऑपरेशन तहलका में, ऑपरेशन दुर्योधन में, ऑपरेशन चक्रव्यूह में, आदि-आदि उजागर होते रहते हैं।
अब तो देशभक्त और गद्दार में कोई अंतर ही नहीं रहा।
हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजामे-गुलिस्तां क्या होगा?
10. गीत चतुर्वेदी :- इनका जन्म 27 नवंबर 1971 को मुंबई में हुआ। यह कवि गीतकार, पत्रकार, कथाकार, कहानीकार, उपन्यासकार है। पत्रकार एवं अनुवादक का काम करते हैं। इंडियन एक्सप्रेस' सहित कई प्रकाशन संस्थाओं ने उन्हें भारतीय भाषाओं के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में शुमार किया है। इनकी रचनाएं देश दुनिया की 22 भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। उनकी रचनाएं है "द मेमोरी ऑफ नाउ", "सिम-सिम", "पेन अमेरिका" आदि है।
प्रस्तुत है उनकी सबसे सुप्रसिद्ध कविता " जुगनू " की कुछ पंक्तियां :
साल में एक रात ऐसी आती है,
जब एक कविता किताब के पन्नों से निकलती है,
और जुगनू बनकर जंगल चली जाती है,
जब सूरज को एक लंबा ग्रहण लगेगा,
चाँद रूठकर कहीं चला जाएगा,
जंगल से लौटकर आएँगे ये सारे जुगनू,
और अँधेरे से डरने वालों को रोशनी देंगे।।
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