
ऐसे दिग्गज नेता जो प्रख्यात कवि भी हैं!!!
"मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है"
-अटल बिहारी वाजपेयी
कविताओं को व्यक्तिगत तोर पर अपनी सोच को दर्शाने या सपष्टिकरन देने के मुख्य माध्यम के रूप में चुना जा सकता है। अपनी भावनाओं को प्रस्तुत करने के लिए इस कला का प्रयोग अगर कुशलता से किया जाए तो कवि उच्च ख्याति प्राप्त कर लेता है।भारतीय राजनीति में भी इस कला का उपयोग राजनेताओं द्वारा प्रचलन में रहा है। हम पढ़ते आ रहें हैं किस तरह स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी कई स्वतंत्रता सेनानिओं द्वारा अपना आक्रोश दर्शाने के लिए कवितायों का प्रयोग किया गया था जो आज भी पढ़ी जाती हैं।
नेता अपने भाषणों में कवितायों का बख़ूबी उपयोग करते हैं। ऐसा वो जनता के अपनी ओर आकर्षित करने के लिए करते हैं।
हालांकि ऐसे कई दिग्गज राजनेता हैं जिन्होंने राजनीति में अपना सिक्का चलाने के साथ-साथ, बेहतरीन कवि के रूप में भी पहचान हासिल किया है।
आइये नज़र डालते हैं कुछ ऐसे ही राजनेताओं पर:
श्री. अटल बिहारी वाजपयी
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी ऐसे राजनेताओं में सबसे पसंदीदा रहे हैं।उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट ख्याति प्राप्त की और अनेकों पुस्तकों की रचना की हैं।उनकी राजनीतिक निपुणता से तो दुनिया भलीभांति परिचित है ही,साथ ही उनके द्वारा रचित कविताएँ भी प्रेरणास्रोत रहीं हैं ।अपने एक इन्टरव्यू में कवि हृदय के बारे में बताते हुए वह कहते हैं कि कविता "मुझे घुट्टी में मिली है"। बता दें उनके द्वारा लिखी पहली कविता "ताजमहल" थी हांलाकि उनकी ये कविता न तो ताजमहल की सुंदरता पर आधारित थी और न ही शहाजहां और मुमताज के प्रेम पर बल्कि यह कविता उन श्रमिकों पर आधारित थी जिन्होंने इस अजूबे का निर्माण किया था। उनकी रचना इतनी प्रभावी हुआ करती थीं कि कई बार सिर्फ अपनी कविताओं से ही अपने विरोधियों का मुंह बंद कर दिया करते थे। एक बार,जब दिल्ली में जनसभा हो रही थी तब वहां जनता पार्टी के नेता आकर स्पीच दे रहे थे। वहां काफी ठंड थी और साथ - साथ बारिश भी हल्की-हल्की होने लगी थी,पर लोग जों के तों बैठे रहे। ऐसा सब देख एक नेता ने आश्चर्य से जनसभा में आए एक व्यक्ति से पूछा कि लोग जा क्यों नहीं रहे।इतनी ठंड भी है और भाषण भी कुछ खास नहीं दिया जा रहा,तो जवाब मिला कि अभी अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण होना है,इसलिए लोग रुके हुए हैं जो दर्शाता है कि उनके भाषण जिनमें वे कविताओं का प्रयोग करते थे कितनी प्रभावि होती थी। नजरिया बदल देने वाली उनकी कविताओं ने लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
-अटल बिहारी वाजपयी
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
-अटल बिहारी वाजपयी
कुमार विश्वास
हिंदी के प्राध्यापक रह चुके कुमार विश्वास, आज यूवाओं के बीच अत्यन्त प्रिय कवि बन चुके हैं ।उनकी रचित कविता 'कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है' आज भी उतना ही लोकप्रिय है।हांलाकि आज वे राजनीति में उतने सक्रिय नहीं हैं। वे कहते हैं की सियासत में मेरा खोया या पाया हो नहीं सकता। सृजन का बीज हूँ मिट्टी में जाया हो नहीं सकता।"
लोगों को उनकी कविताओं के साथ-साथ उनके द्वारा कविताओं को अपने शानदार अंदाज में प्रस्तुत करना भी बहुत भाता है।
उन्हें लेखनी के प्रति इतना लगाव था की उन्होंने बीच में ही अपनी इंजीनियर की पढ़ाई को छोड़ दीया कर हिन्दी साहित्य को चुन लिया था ।
कुमार विश्वास को 1994 में 'काव्य कुमार' 2004 में 'डॉ सुमन अलंकरण' अवार्ड, 2006 में 'श्री साहित्य' अवार्ड और 2010 में 'गीत श्री' अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
उन्हें इस पीढ़ी का एकमात्र आई एस ओओ कवि और अपनी पीढ़ी का सबसे ज्यादा संभावनाओं वाला कवि भी कहा गया है। वही प्रसिद्ध हिंदी गीतकार नीरज ने उन्हें 'निशा-नियाम' की संज्ञा भी दी है।वे छात्रों के बीच जा कर उन्हें प्ररित करते हैं।
बता दें वे कई प्रसिद्ध समाचार पत्रों के लिए भी लिखते हैं ।
कोई दीवाना कहता है,
कोई पागल समझता है,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ ,
तू मुझसे दूर कैसी है,
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है।
-कुमार विश्वास
सूरज पर प्रतिबंध अनेकों और भरोसा रातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं हँसना झूठी बातों पर
-कुमार विश्वास
रमेश पोखरियाल
वर्तमान भारत सरकार में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' हिंदी साहित्य के अद्भुत कवि हैं। उनके द्वारा कई कविता, उपन्यास, खण्ड काव्य, लघु कहानी, यात्रा साहित्य आदि रचित हैं।रमेश पोखरियाल ने अपने करियर की शुरुआत सरस्वती शिशु मंदिर में एक शिक्षक के रूप में की थी, जो आरएसएस से संबन्धित था।उनकी रचनाओं का विविध भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
अपने श्रेष्ठ योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कारों से सम्मानित किया गया है।
आपको यह जान कर आश्चर्य होगा की उनके साहित्य पर अब तक कई शिक्षाविद् शोध कार्य तथा पी.एचडी. रिपोर्ट लिखे जा चुके हैं जो अब भी कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में जारी है।
2007 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने उनकी सराहना करते हुए कहा था ‘‘सक्रिय राजनीति में रहते हुए भी जिस तरह से डाॅ0 ‘निशंक’ साहित्य के क्षेत्र में लगातार संघर्षरत हैं, वह आम आदमी के बस की बात नहीं है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे अपनी लेखनी के जरिए देश के नीति नियंताओं के समक्ष विभिन्न मुद्दों को लेकर अनेक प्रश्न खड़े करते रहेंगे।’’
हालही में भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल "निशंक"को वैश्विक महर्षि महेश योगी संगठन एवं विश्व के महर्षि विश्वविद्यालयों की ओर से प्रतिष्ठित सम्मान 'अंतरराष्ट्रीय अजेय स्वर्ण पदक' के लिए चयनित किया गया है।
उनके द्वारा लिखित कविता संघर्ष "सृजन के बीज"से एक कविता की कुछ पंक्तियाँ:
संघर्ष की
यह तो कुछ पंक्तियां भर हैंहै
तुम कुछ आगे बढ़कर
देखो तो सही
किताब तो अभी पूरी बाकी है।
इन राहों पर न सिर्फ चलना
बल्कि तुम्हें सेतु बनाना है।
तेरे बाद इस सेतु पर तो
लाखो ने अपना पग बढ़ाना है।
-रमेश पोखरियाल (निशंक)
फिरोज वरुण गांधी
फिरोज वरुण गांधी एक भारतीय राजनीतिज्ञ होने के संग-संग एक कुशल कवि एवं लेखक भी हैं,जिन्होंने 17 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था।आपको बता दें वर्ष 2000 में 20 साल की उम्र में वरुण गांधी का पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ था।इसके बाद 2015 में उनका दूसरा कविता संग्रह आया।
30 नवंबर 2018 को आईआईएम अहमदाबाद से लॉन्च की गई, किताब 'रूरल मैनिफेस्टो' गाँधी ने चुनावों के दौरान किसानों पर हो रही राजनीति के बीच लिखा था, जिसने किसानों की समस्याओं पर प्रकाश डालने का कार्य किया।
वे बताते हैं कि इस किताब को लिखने से पहले वे देश के हर हिस्से में गए ।उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था और किसानों की हालत को और करीब से जाना और समझा,और इसे ही अपनी किताब का आधार बनाया।
वरुण गांधी एक व्यापक रूप से सम्मानित नेता और नीति विश्लेषक हैं, जो द हिंदू, द इकोनॉमिक टाइम्स, हिंदुस्तान टाइम्स और एनडीटीवी के लिए अंग्रेजी में नियमित रूप से लिखते हैं । साथ-साथ अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, राजस्थान पत्रिका और हिंदुस्तान के लिए हिंदी में लिखते हैं। गांधी अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भाषाओं में लोकमत, मलयाला मनोरमा, सांबाद, विजयवाणी आदि के लिए भी लिखते हैं, जो उन्हें देश में सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला स्तंभकार बनाते हैं।
शशि थरूर
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केरल के तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं हैं,सभी जानते हैं कि वह एक महान लेखक हैं परन्तु बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वे एक अंग्रेजी कवि भी है, और कभी कभार हिंदी कविताएँ भी लिखते हैं। वे अब तक कई किताबें लिख चुके हैं।विशेष रूप से नेहरू के ऊपर उन्होंने कई किताबें लिखीं हैं । बता दें इसके अलावा 1989 में प्रकाशित ''द ग्रेट इंडियन नॉवेल' उनकी चर्चित किताब है। 2018 में आई उनकी किताब ‘व्हाई आई एम हिंदू’ काफी चर्चा में रही। यह किताब तब चर्चा में आई जब देश में हिंदू होने की परिभाषा पर बहस चल रही थी। जब हिंदुत्व की परिभाषाएं बदल रही थी ।
शशि थरूर ने यह किताब तीन खंडों में प्रस्तुत की है:
पहले खंड: ‘मेरा हिन्दूवाद’
दूसरे खंड: ‘राजनीतिक हिन्दूवाद’
तीसरे खंड: ‘सच्चे हिन्दूवाद
इस किताब में थरूर ने बताया है कि किस तरह से एक आदमी सहज ही हिंदू होता है।
बता दें शशि थरूर प्रसिद्ध आलोचक एवं स्तम्भकार होने के साथ-साथ 15 कथा-साहित्य एवं अन्य पुस्तकों के लोकप्रिय लेखक भी हैं।
2020 में कोरोना पर लिखी गई उनकी मजेदार कविता बहुत प्रचलित रही, अपनी इस कविता में चीन को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा,कि चीन ने पहले गलती से कुछ खाया और अब वो कुछ इंसानों को खा रहा है।
ये कविता आपके सामने प्रस्तुत है:
Corona Corona का डर खा रहा है,
ये लफ्ज़ अब हमारा भी सर खा रहा है।
किसी चीनी ने खाया है गलती से कुछ,
वो कुछ अब, नारी और नर खा रहा है।
घरेलू से नुस्खे बताते हैं सब,किस-किस की मानें, बता मेरे रब?
भगाना है गर हमको दानव घिनोना।
भाई मेरे... हाथ साबुन से धोना'।
-शशि थरूर
सलमान खुर्शीद
भारत सरकार में भूूूतपूर्व विदेश मंत्री रहे चुके सलमान खुर्शीद राजनेता होने के साथ-साथ एक प्रख्यात लेखक एवं कवि भी हैं ।2012 में हुए दिल्ली बलात्कार पर उन्होंने काफी भावविभोर कर देने वाली कविता रचि थी जो आज भी चर्चा में है।
दुनिया हमारा इंतजार कर रही है, दुनिया हमारे साथ जुड़ना चाहती है, दुनिया हमारे साथ दोस्ती करना चाहती है, दुनिया समृद्धि में हमारा भागीदार बनना चाहती है, और दुनिया कई तरह से भारत की प्रशंसा करती है।
-सलमान खुर्शीद
समझा जाए तो वर्षों से कविताओं का सहारा,नेताओं द्वारा अपने भाषणों या कार्यों को अलंकृत करने के लिए किया जाता है। संसद में आरोप- प्रत्यारोप के लिए भी कविताओं का भलिभांती इस्तेमाल किया जाता रहा है।
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