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बिहार के युवा कवि और लेखक जिनकी लेखनी को दुनिया सलाम करती है | बिहार दिवस

Kavishala LabsKavishala Labs March 23, 2021
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१. गजेन्द्र ठाकुर: भारतक लेखक छथि। ओ मैथिली मे लिखै छथि जे भारतक उत्तरी बिहार आ नेपालक दक्षिण-पूर्वी भागमे बाजल जाइत अछि । ओ मैथिली लेखक, कोष- निर्माता, आ विदेह (मिथिला)क इतिहासक ज्ञाता छथि । ओ मैथिली भाषाक तिरहुता लिपिमे लिखल ११००० तालपत्र-बसहा पत्रपर लिखल अभिलेखक देवनागरीमे लिप्यंतरण केने छथि। वो पञ्जी सभ मिथिला क्षेत्रक मैथिल ब्राह्मण समुदायक आनुवंशिक लेखक थिक आ ऐमे लगभग १०० अन्तर्जातीय विवाह सेहो लिखित रूपमे वर्णित अछि। अखन धरि पौराणिक बुझल जाएबला व्यक्तित्व सभक लिखित प्रमाण पहिल बेर ऐ मे उपलब्ध भेल अछि।

गजेन्द्र ठाकुर केँ जन्म बिहार केँ भागलपुर में ३० मार्च १९७१ ई. मे भेल । पिता-स्वर्गीय कृपानन्द ठाकुर, माता-श्रीमती लक्ष्मी ठाकुर, मूल-गाम-मेंहथ, भाया-झंझारपुर,जिला-मधुबनी (बिहार)। शिक्षा: एम.बी.ए. (फाइनेन्स), सी.आइ.सी., सी.एल.डी., कोविद। विदेह (पत्रिका) प्रधान संपादक सहित अनेको वेबसाइटक संचालक आ पथप्रदर्शक।


२. अभय के. एक भारतीय राजनयिक और कवि हैं। उन्होने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमे से 'रिवर वैली टू सिलोकोन वैली' भी एक हैं। वे पृथ्वी गान के रचयिता हैं। दक्षिण भारतीय कविता क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें सार्क लिटरेरी अवार्ड प्राप्त हैं। अभय कुमार नालंदा जिला बिहार के मूल निवासी हैं। उन्होने दिल्ली के किरोरि मल कॉलेज तथा जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उन्होने २००३ में भारतीय विदेश सेवा ज्वाइन किया। भारतीय राजनयिक अभय कुमार द्वारा लिखा गया 'पृथ्वी गान' शीर्षक कविता का यूनेस्को द्वारा पूरी दुनिया में प्रसार किया गया है। हाल ही में दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) सचिवालय में हुई एक बैठक में इस कविता में दक्षेस गान तलाशने के लिए चर्चा शुरू हो गई। दक्षेस के विभिन्न विभागों के प्रमुख और सदस्य देशों के विदेश मंत्री इस कविता को दक्षेस गान के रूप में अपनाने के गुण-दोषों पर विचार कर रहे हैं। दक्षेस ने फरवरी में माले में होने वाले दक्षेस मंत्री परिषद की बैठक में इस पर एक सलाह भेजने का भी विचार किया जा रहा है। यदि इसे मंजूर कर लिया जाता है तो यहां होने वाले 18वें दक्षेस शिखर सम्मेलन में प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है, जिसकी तिथि अभी तक तय नहीं हुई है। राजनयिक सूत्रों के मुताबिक इस कविता को अपनाने पर विचार करने के लिए दक्षेस सांस्कृतिक केंद्र में भी भेजा गया है। उनकी कविता में हिंदुस्तानी, अंग्रेजी, नेपाली, बांग्ला, पस्तो, उर्दू, सिन्हाली, जोंगखा और धीवेही भाषाओं की पंक्तियां शामिल की गई हैं। ये भाषाएं दक्षेस के आठ सदस्य देशों में बोली जाती हैं। कविता का कुछ अंश इस प्रकार है: "हिमालय से हिंद तक, नगा हिल्स से हिंदूकुश/महावली से गंगा तक, सिंधु से ब्रह्मपुत्र/लक्षद्वीप, अंडमान, एवरेस्ट, एडम्स पीक/ काबुल से थिंपू तक, माले से काठमांडू/दिल्ली से ढाका, कोलंबो, इस्लामाबाद/हर कदम साथ-साथ।" पृथ्वी गान का लोकार्पण साल जून २०१३ में पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल और पूर्व मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री शशि थरूर ने नई दिल्ली के भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) में किया था। इसके बाद काठमांडू में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री झालानाथ खनल ने यूनेस्को के नेपाल में प्रतिनिधि एक्सेल प्लेथ की मौजूदगी में इसे जारी किया था। अभय के मुताबिक इसके बाद से पृथ्वी गान का दुनिया की कई प्रमुख भाषाओं में अनुवाद किया गया है।


"मैं समझता हूं कि दक्षिण एशियाई देशों द्वारा समान रूप से गाया जा सकने वाला दक्षेस गान एक गहरी दक्षिण एशियाई भावना और भाईचारे के विकास के लिए उत्प्रेरक का काम करेगा।”

- अभय कुमार


ब्रह्मांड की नीली मोती, धरती

ब्रह्मांड की अदभुत ज्योति, धरती

सब महाद्वीप, महासागर संग -संग

सब वनस्पति, सब जीव संग -संग

संग -संग पृथ्वी की सब प्रजातियाँ

काले, सफेद, भूरे, पीले, अलग-अलग रंग

इंसान हैं हम , धरती हमारा घर


ब्रह्मांड की नीली मोती, धरती

ब्रह्मांड की अदभुत ज्योति, धरती

सब महाद्वीप, महासागर संग -संग

सब वनस्पति, सब जीव संग -संग

संग -संग पृथ्वी की सब प्रजातियाँ

काले, सफेद, भूरे, पीले, अलग-अलग रंग

इंसान हैं हम , धरती हमारा घर



ब्रह्मांड की नीली मोती, धरती

ब्रह्मांड की अदभुत ज्योति, धरती

एक के संग सब सौर एक सबके संग

सब लोग, सब राष्ट्र, संग -संग

आओ सब मिलकर नीला झंडा फहराएँ

आओ सब मिलकर पृथ्वी गान गाएं

काले, सफेद, भूरे, पीले, अलग अलग रंग

इंसान हैं हम , धरती हमारा घर


“”

अभय कुमार द्वारा रचित "पृथ्वी गान" का हिन्दी में भावानुवाद

 

आओ सब मिलकर नीला झंडा फहराएँ

आओ सब मिलकर पृथ्वी गान गाएं

काले, सफेद, भूरे, पीले, अलग अलग रंग

इंसान हैं हम , धरती हमारा घर


[अभय कुमार द्वारा रचित "पृथ्वी गान" का हिन्दी में भावानुवाद]


३. राज शेखर: राजशेखर एक ऐसा नाम जो कविताओं के साथ साथ ‘तनु वेड्स मनु’ में. ‘जुगणी’, ‘रंगरेज़’ और ‘यूं ही’ जैसी फिल्मो के गीतों के लिए भी प्रसिद्ध हैं! बिहार के मधेपुरा से आकर मुंबई में जो धमाका इन्होने मचाया है वो हम सब फिल्मों और कविताओं में देखते रहते हैं! उनके लिखे गीतों की सूची देखें तो कुल जमा चालीस- इकतालीस गीत हैं , यानी कि साल के तकरीबन 4-5 गीत । आज के इस ‘ जो दिखता है वो बिकता है’ के दौर में यह सूची काफी छोटी लगती है । लेकिन बावजूद इसके वे बराबर फिल्मों में बने हुए हैं । उनके गीत पसंद किए जा रहे हैं – जनता के द्वारा भी और फिल्म-वाले लोगों के द्वारा भी । उनके द्वारा लिखे गए पहले गीत ‘ ऐ रंगरेज़ मेरे’ ने ही अपार सफलता का स्वाद चखा दिया । अमूमन ऐसा होता नहीं है! ‘तनु वेड्‍स मनु’ के गीतों को हम कैसे भूल सकते हैं । इस फिल्म में उनके लिखे सारे गीत एक से बढ़कर एक ।

  • साल था 2011 । एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया है कि ‘ऐ रंगरेज़ मेरे’ और ‘ मन्नू भैया का करिहैं’ एक ही दिन बल्कि एक ही बैठक में लिखे गए गीत हैं! अगर आपने दोनों गाने सुने हैं तो राज शेखर की ‘रेंज’ पर विस्मित हुए बिना नहीं रह पाए होंगे । 
  • उसके बाद 2013 में एक गाना आता है फिल्म ‘इसक़’ में – ‘ एन्ने-ओन्ने’ । होली का मस्ती भरा गाना । इस गाने को देखें तो इसमें गीतकार द्वारा होली के नाम पर छूट लेने की पूरी संभावना थी , पर उसको जिस नज़ाकत से वो संभाल ले गए हैं वह देख तुझे सिलवट-सिलवट चख लें /हम पारा- पारा पिघलें । गुलज़ार राज शेखर के पसंदीदा गीतकार हैं, मालूम नहीं उन्होंने यह गीत सुना है कि नहीं ?
  • ‘इसक’ के बाद 2105 में ‘तनु वेड्‍स मनु रिटर्न्‍स’ । इस फिल्म का एक गीत, जो शायद उतना चर्चित नहीं हुआ, - हो गया है प्यार तुमसे / तुम्हीं से एक बार फिर से । प्यार की एक नई व्याख्या । और इतनी मखमली!
  • 2016 में आई ‘ क्यूट कमीना’ । इसके गानों की भी चर्चा उतनी नहीं हुई । भोपाल शहर पर लिखी गई कव्वाली भोपाल शहर के किरदार को आँखों के सामने रख देती है । ‘ सिंगल चल रिया हूँ’ गीत में एक पंक्ति है ‘ मालवा के आसमाँ पे / किसने की फुलकारियाँ ये’ । किसी जगह , किसी प्रदेश को इतने रोमांटिक रूप में गाने में शामिल कर लेना गाने में एक अलग कशिश पैदा कर देता है । कशिश तो इसी फिल्म के एक और गीत ‘ शाम होते ही’ में यह लाइन भी पैदा करती है – ‘ नीले सैटिन में लिपटा ये शहर / चमके जुगनू-सा’ । ‘  तनु वेड्‍स मनु रिटर्न्‍स’ का एक गीत ‘ ओ साथी मेरे’ , उसके गायक सोनू निगम को हद से ज्यादा पसंद है ।
  • 2017 में एक फिल्म आई थी ‘ फ्रेंडशिप अनलिमिटेड’ इसमें भी सोनू निगम का गाया , राज शेखर का लिखा एक गीत है – ‘ तेरे बिन ओ यारा’ । यह गीत भी ‘ ओ साथी मेरे’ की टक्कर का ही है । इसी साल एक फिल्म आई ‘ करीब करीब सिंगल’ । इसमें राज शेखर के दो गीत थे । ‘ जाने दे’ जो लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया, और उतरा ही नहीं । पर इसी फिल्म का एक दूसरा गीत ‘ खतम कहानी’ एक अलग ही चोखे रंग का गीत है । 
  • 2018 में एक छोटी-सी फिल्म आई ‘ मेरी निम्मो’ । यह उस समय भी ओ.टी.टी पर ही रिलीज़ हुई थी । इस फिल्म में तीन गीत । एक गीत की कुछ लाइनें देखिए आते-जाते पल से न जी लगाओ...क्या ये भी बीत जाएगा / हाँ ये भी बीत जाएगा । यह गीत अंग्रेज़ी की एक कविता  This, too, shall pass away” ( Paul Hamilton Hayne) की बरबस ही याद दिलाता है जैसे शैलेन्‍द्र का लिखा गीत  हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं  Our sweetest songs are those that tell of saddest thought” ( P.B. Shelley)  कविता की । शैलेन्‍द्र भी राज शेखर के पसंदीदा गीतकार हैं ।
  • 2018 में तीन फिल्में और चार गीत और आए । हिचकी’ में ‘ खोल दे पर’ और ‘मैडम जी गो ईज़ी’, ‘वीरे दी वेडिंग’ में ‘आ जाओ ना’ और ‘तुम्बाड’ का टाइटिल सॉन्‍ग । ‘ तुम्बाड’ का गीत जरूर सुना जाना चाहिए । इसमें शब्दों से जो ध्वनियाँ उत्पन्न की गई हैं वो एक दूसरे ही लोक में ले जाती हैं । ऐसा कर पाना भी संभवत: राज शेखर के बस का ही था ।
  • 2019 में तीन फिल्में । ‘उरी’ , ‘जबरिया जोड़ी’ और ‘ साँड की आँख’ । ‘उरी’ के गीत ‘बह चला’ की यह लाइन देखिए छोटी-सी ज़िद होगी, लंबी-सी रातें /फिर भी प्यार रह जाएगा । यह पंक्ति चमत्कृत कर देती है । ‘जबरिया जोड़ी’ के ‘ मच्छरदानी’ में एक तरफ तो मच्छरदानी शब्द का इस्तेमाल होता है तो दूसरी तरफ ‘क्वीन, स्वीटी, पासवर्ड’ जैसे शब्द । यानी कि शब्द सहज रूप से ही चले आते हैं गीतों में बेखटके, बिना किसी को खटके । ‘ साँड की आँख’ पूरा एल्बम ही खास है । गीतों की विविधता के कारण और आशा भोंसले के गाए गीत ‘ आसमाँ’ के कारण । इस गीत के बारे में आशा जी ने किसी साक्षात्कार में कहा है कि ऐसे गाने अब बनते नहीं हैं ।
  • 2020 में फिर से एक बार ‘बम्फाड़’ सिनेमाघरों में न रिलीज़ हो कर ओ.टी.टी पर हुई , हालाँकि तब तक देश में लॉकडाउन भी लग गया था । मालूम नहीं इस फिल्म के गानों का एल्बम क्यों नहीं रिलीज़ किया गया है अब तक । यू ट्यूब पर बिखरे हुए इसके गानों को सुनिए , या फिर फिल्म देख कर सुनिए । ‘बम्फाड़’ के गीतों की कुछ पंक्तिय ऐसे तो कोई खास बात है नहीं / तू है तो ज़िंदगी ये कीमती लगे ,  ज़िक्र गुलाबी तेरा जितना है / उतना ही मैं भी गुलाबी अब हो रह  मैं मुंतज़िर नहीं / पर इंतज़ार-स या फिर  जीभ है गँड़ासा इनकी । एक तरफ नर्मो-नाज़ुक इश्क की बातें तो दूसरी तरफ गँड़ासा – उतनी ही सहजता से । ओ.टी.टी पर ही रिलीज़ हुई ‘ रात अकेली है’ में राज शेखर का एक गीत है ‘ आधे-आधे-से हम’ । इस गीत को सुनिए और सोचिए कि कविता और क्या होती है ? राज शेखर ने एक ‘शॉर्ट फिल्म’ ‘द गाइड’ के लिए भी एक गीत लिखा है , उसका भी उल्लेख जरुरी है !

राज शेखर के गीतों में उनका लोक उनके साथ चलता है । लोक जहाँ पर वे रमते हैं, लोक जहाँ से वे आते हैं । बिहार के , खास कर मिथिला/कोसी क्षेत्र के शब्दों को वे अपने गीतों में बड़ी सहजता से ले आते हैं । खिसियाना, धकधकाना, हकबकाना – जैसे शब्द मुख्य धारा की हिंदी फिल्मों में आ रहे हैं और स्वीकार किए जा रहे हैं । इसका कुछ श्रेय राज शेखर को भी जरूर जाता है । अंग्रेज़ी और पंजाबी शब्दों को हम पहले ही हिंदी फिल्मों के गीत में स्वीकार कर चुके हैं । राज शेखर ने संख्या की दृष्‍टि से कम ही गीत लिखे हैं । यह दो बातों को इंगित करता है – एक कि राज शेखर हड़बड़ी में नहीं हैं दूसरे उनके काम की गुणवत्ता लोगों को उनसे बाँधे रखी है । अब जबकि फिल्मों में एक तरह से गानों की जगह कम होती जा रही है, राज शेखर के गीतों का आते रहना और भी जरुरी है! (परिचय साभार तरावट से)

'कितने दफे दिल ने कहा, 

दिल की सुनी कितने दफे,

वैसे तो तेरी ना में भी, 

मैंने ढूंढ ली अपनी खुशी 

तू जो अगर हाँ कहे,

तो बात होगी और ही 

दिल ही रखने को कभी 

ऊपर-ऊपर से सही

कह देना हां ,

कह देना हाँ यूं ही.'


४.अनामिका: हमारे दौर की चर्चित कवयित्री अनामिका का जन्म 17 अगस्त, 1963 को बिहार के मुजफ्फरपुर में हुआ. हमारे दौर की चर्चित कवयित्री अनामिका का जन्म 17 अगस्त, 1963 को बिहार के मुजफ्फरपुर में हुआ. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अँग्रेजी साहित्य में एमए, पीएचडी और डीलिट् की डिग्री हासिल की और दिल्ली विश्वविद्यालय के अधीन सत्यवती कॉलेज के अँग्रेजी विभाग में अध्यापन करने लगी. अनामिका के सात कविता-संकल, पाँच उपन्यास, चार शोध-प्रबन्ध, छह निबन्ध-संकलन और पाँच अनुवाद खूब चर्चित हुए. इनके पाठकों का संसार काफी बड़ा है. रूसी, अंग्रेज़ी, स्पेनिश, जापानी, कोरियाई, बांग्ला, पंजाबी, मलयालम, असमिया, तेलुगु आदि में इनकी कृतियों के अनुवाद कई पाठ्यक्रमों का हिस्सा भी हैं. तीन मूर्ति में फेलो के रूप में उनके शोध का विषय था!


प्रेम के लिए फाँसी


मीरा रानी, तुम तो फिर भी ख़ुशकिस्मत थी,

खाप पंचायत के फ़ैसले

तुम्हारे सगों ने तो नहीं किए!

‘‘राणाजी ने भेजा विष का प्याला’’-

कह पाना फिर भी आसान था,

‘भैया ने भेजा’- ये कहते हुए जीभ कटती।

बचपन की स्मृतियाँ कशमकश मचातीं,

और खड़े रहते ठगे हुए राह रोककर

सामा-चकवा और बजरी-गोधन के सब गीत

‘राजा भइया चललें अहेरिया,

रानी बहिनी देली असीस हो न’!

हँसकर तुम यही सोचती-

‘भैया को इस बार मेरा ही

आखेट करने की सूझी!

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