जहां भी आजाद रूह की झलक पाए,
समझ जाना वहां मेरा घर है!
— अमृता प्रीतम
1. कोरे कागज़ :-
कोरे कागज़ के रूप में अनुवादित, अमृता प्रीतम का एक उपन्यास है। कहानी एक युवक के साथ शुरू होती है जो अपनी मां की मृत्यु का गवाह बनने और अपने जन्म और जीवन के रहस्यों की खोज करने के लिए घर आता है। उसे पता चलता है कि वह उसकी माँ का जैविक पुत्र नहीं है और उसके जीवन को घेरने वाले कई रहस्य हैं। साजिश खून और पानी के संबंधों के आयामों के साथ-साथ भेदभाव, लालच, सामाजिक प्रथाओं और ज्योतिष के विचारों को कवर करने में जटिल है। ज्योतिष की चर्चा में ग्रहों की स्थिति का विवरण काफी आश्चर्यजनक था।
2. कागज और कैनवास :-
अमृता प्रीतम को साल 1980-81 में 'कागज और कैनवास ' कविता संकलन के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इस संकलन में अमृता अमृता प्रीतम की उत्तरकालीन प्रतिनिधि कवितायें संगृहित हैं. प्रेम और यौवन के धूप-छाँही रंगों में अतृप्त का रस घोलकर उन्होंने जिस उच्छल काव्य-मदिरा का आस्वाद अपने पाठकों को पहले कराया था, वह इन कविताओं तक आते-आते पर्याप्त संयमित हो गया है और सामाजिक यथार्थ के शिला-खण्डों से टकराते युग-मानव की व्यथा-कथा ही यहाँ विशेष रूप से मुखरित है !
आधुनिक यन्त्र-युग की देन मनुष्य के आंतरिक सूनेपन को भी अमृता प्रीतम ने बहुत सघनता के साथ चित्रित किया है! यह विशिष्ठ कृति के माध्यम से पंजाबी से अनूदित होकर ये कविताएं, जिसमें अमृता जी ने भोगे हुए क्षणों को वाणी दी है।
प्रस्तुत है उनकी इस किताब की सुप्रसिद्ध कविताओं की कुछ पंक्तिया :
(i) "एक मुलाकात"
कई बरसों के बाद अचानक एक मुलाकात
हम दोनों के प्राण एक नज्म की तरह काँपे ..
सामने एक पूरी रात थी
पर आधी नज़्म एक कोने में सिमटी रहीऔर आधी नज़्म एक कोने में बैठी रही
फिर सुबह सवेरे
हम काग़ज़ के फटे हुए टुकड़ों की तरह मिले।।
(ii) "एक घटना"
तेरी यादें, बहुत दिन बीते जलावतन हुई
जीती कि मरीं-कुछ पता नहीं।
सिर्फ एक बार-एक घटना घटी
ख्यालों की रात बड़ी गहरी थी और इतनी स्तब्ध थी।।
(iii) "एक अफवाह बड़ी काली"
एक चमगादड़ की तरह मेरे कमरे में आई है
दीवारो
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