कविशाला द्वारा आयोजित कविशाला संवाद का हिस्सा बने जाने-माने कवि एवं व्यंकार पंकज प्रसून।जिन्हे हालही में उत्तर प्रदेश भाषा सम्मान से सम्मानित किया गया है वहीं व्यंग विभूषण जैसे कई उल्लेखनीय सम्मान प्राप्त हैं।
सर ,आप व्यंगकार हैं जब भी व्यंग की बात होती है तो एक और शब्द जुड़ जाता है हास्य ,व्यंग और हास्य की जो परिभाषाएं हैं वो कितनी भिन्न और कितनी सामान हैं?
पंकज प्रसून :हास्य का सम्बन्ध हृदय से होता है और व्यंग का मस्तिष्क से है। हास्य आपको आनंदित कर सकता है और अगर आप किसी पर व्यंग कर रहे हैं तो आप उसे मीठी चुभन दे रहे हैं ,जिसके लिए आप अपने मस्तिष्क का प्रयोग करेंगे ,क्यूंकि मैं मानता हूँ व्यंग पढ़े लिखे शब्द की उपज होती है। दोनों के उद्देश्यों में भी भिनत्ताऐं हैं जहाँ हास्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन होता है व्यंग का उद्देश्य होता है सुधार।
सर व्यंग की यह विधा कबीर के वक्त से चली आ रही है जो आज तक विद्यमान है उस वक़्त से लेकर आज तक में व्यंग की विधा में आये बदलाव के बारे में कुछ बताएं।
पंकज प्रसून:कबीर के समय में लोकतंत्र नाम की चीज़ अस्तित्व में नहीं थी बल्कि राजतंत्र था आज लोकतंत्र हैं ,तो लोकतंत्र की विसंगतियां भी अलग-अलग हैं उन्होंने कभी राजनीति पर नहीं लिखा पर समाज की विसंगतियों पर लिखा जो उस समय बड़ी समस्या थी। तो समय के साथ साथ विसंगतियां बदलती जाती हैं आज का व्यंगकार सड़कों पर बने गड्ढों पर लिखता है पर तब नहीं लिखा जाता था आज की समस्याएं अलग हैं तब की अलग थी।
सर वयंग की इस विधा को आपने अपनी लेखनी के लिए चुना ,इसके पीछे क्या कोई विशेष कारन रहा या कोई प्रेरणा श्रोत ?
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments