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कविशाला संवाद 2021 : इतवार छोटा पड़ गया -प्रताप सोमवंशी

Kavishala InterviewsKavishala Interviews October 21, 2021
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राम तुम्हारे युग का रावण अच्छा था 

दस के दस चेहरे सब बाहर रखता था 

-प्रताप सोमवंशी 


कविशाला संवाद २०२१ का हिस्सा बने वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रसिद्ध लेखक प्रताप सोमवंशी जिन्होंने विविध विधाओं में लेखन कार्य किया है। कविशाला द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने हिंदी और उसके भविष्य को लेकर अपने विचार साझा किए। 


सर जैसा की आप कहते हैं कविता और पत्रकारिकता मेरी दो आंखे हैं ,इसके बारे में कुछ बताइए ?


प्रताप सोमवंशी : लोग जानते हैं मैं पत्रकार हूँ और साथ कविताएं भी लिखता हूँ तो लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि कहीं पत्रकारिकता के कारण आपका कवी प्रभावित तो नहीं होता या कई बार कवि पर उसकी लेखनी इतनी भारी पड़नेलगती है कि वो अखबार के काम को ही तुक्ष समझने लगता है कई पत्रकार हैं जिन्होंने ऐसा किया है पर मैं समझता हूँ कि मेरे लिए ये दोनों एक पुरख हैं। मैं पत्रकार के तोर पर १२ साल रिपोर्टर रहा और पिछले २० साल से संपादक हूँ तो घटनाओं से स्थितिओं-परिस्थितिओं से देशकाल में आए बदलाव से जो किस्से और चीज़े मैं ग्रहण करता हूँ उसी को अपने साहित्य में डालता हूँ और मैं मानता हूँ इससे मौलिकता और मौलिक स्वरुप अमर रहता है। मैं जो देखता समझता हूँ उसे लिखता हूँ जिसका अवसर मुझे पत्रकारिकता ने दिया इसलिए मैं कहता हूँ कि कविता और पत्रकारिकता मेरी दो आंखे हैं।


लेखनी प्रारम्भ करने के पीछे कोई विशेष कारण रहा या कोई प्रेरणा श्रोत ?


प्रताप सोमवंशी : मुझे लगता है लेखक बनना कोई एक घटना नहीं होती ,लिखना एक प्रक्रिया का हिस्सा है। लेखक मुझे देव तुल्य लगते थे ,जो अख़बारों में या किताबों में जब लेखकों के नाम छपे रहते थे तो मुझे बहुत अच्छा लगता था। मुझे याद है इलाहबाद में जहाँ मेरा घर था वहां से जब मैं जाता था तो वहीँ आस पास राम कुमार वर्मा ,महादेवी वर्मा इन सभी का घर था तो मुझे वो तीर्थ स्थान जैसा लगता था तो जो लेखकों के प्रति आदर था उसी से मन में आया की मैं भी कुछ लिखूं। पढ़ना शुरू किया और उसी लिखने-पढ़ने के क्रम ने मुझे लेखक बना दिया।


सर ,आज कल के युवाओं में देखा जाता है कि वे विदेशी भाषा या सीधे बात करूँ तो अंग्रेजी भाषा के प्रति ज़्यादा आकर्षित हो रहे हैं और कहीं न कहीं अपनी मातृभाषा हिंदी को पीछे छोड़ते जा रहे हैं ,तो सर इन भाषाओँ के कारण क्या आपको लगता है कि हिंदी का जो भविष्य है वो खतरे में है?


प्रताप सोमवंशी : मुझे नहीं लगता कि हिंदी खतरे में हैं जैसा कि हम इस डिजिटल माध्यम से हिंदी की बात कर रहे हैं। पर हाँ हम ये कह सकते हैं कि हमारे यहाँ ये मान लिया गया है कि अंग्रेजी रोजगार की भाषा है अगर आप अच्छी अंग्रेजी जानते हैं तो आप एक अच्छी नौकरी प्राप्त कर सकते हैंतो मुझे लगता है अंग्रेजी का दिमाग पर चढ जाना बुरा है। तो जो जरुरी काम हैं वो तो होते रहे हमारे लिए जरुरी है कि हम हिंदी की पहचान बना कर रखें जो हमारी अपनी भाषा है। ये केवल बात करने का एक जरिया नहीं है बल्कि भाषा हमारा स्वाभिमान है। 


आज के वक्त में बात होती है न्यू हिंदी या युवा साहित्य की ,हिंदी के भविष्य के लिए किस तोर पर देखते हैं?


प्रताप सोमवंशी : बहुत उम्मीद से देखता हूँ जो कहते हैं कि ये बहुत सारे शब्द मिला कर लिखते हैं अंग्रेजी के शब्द डाल देते हैं तो मैं कहूंगा कि हाँ ये सच है मैं खुद भी इसके पक्ष में नहीं हूँ जो शब्द आपकी भाषा में सरल तरीके से उपलब्ध है आपको उसे ढूंढ़ने की कोशिश करनी चाहिए आपने जो शब्द अंग्रेजी में लिखा है आपने उसे कभी याद किया होगा तो वो आप हिंदी के लिए कूं नहीं करते।अंग्रेजी के शब्दों को घटाने का आशय अंग्रेजी के विरुद्ध जाना नहीं है ,बल्कि अपनी भाषा की पहचान को बनाए रखना है। जो भी नौजवान हैं मैं उनसे यही कहना चाहता हूं कि आप बेशक मिली जुली भाषा में लिखें पर अगर आप कह रहे हैं कि आप हिंदी में लिख रहे हैं तो हिंदी के शब्द भण्डार को बढ़ा लीजिए इससे आपका ही फायदा है। 


कैसे कह देता कोई किरदार छोटा पड़ गया 

जब कहानी में लिखा अख़बार छोटा पड़ गया 


सादगी का नूर चेहरे से टपकता है हुज़ूर 

मैं ने देखा जौहरी बाज़ार छोटा पड़ गया 


मुस्कुराहट ले के आया था वो सब के वास्ते 

इतनी ख़ुशियाँ आ गईं घर-बार छोटा पड़ गया 


दर्जनों क़िस्से-कहानी ख़ुद ही चल कर आ गए 

उस से जब भी मैं मिला इतवार छोटा पड़ गया 


इक भरोसा ही मिरा मुझ से सदा लड़ता रहा 

हाँ ये सच है उस से मैं हर बार छोटा पड़ गया 


उस ने तो एहसास के बदले में सब कुछ दे दिया 

फ़ाएदे नुक़सान का व्यापार छोटा पड़ गया 


घर में कमरे बढ़ गए लेकिन जगह सब खो गई 

बिल्डिंगें ऊँची हुई और प्यार छोटा पड़ गया 


गाँव का बिछड़ा कोई रिश्ता शहर में जब मिला 

रुपया डॉलर हो कि दीनार छोटा पड़ गया 


मेरे सिर पर हाथ रख कर मुश्किलें सब ले गया 

इक दुआ के सामने हर वार छोटा पड़ गया 


चाहतों की उँगलियों ने उस का कांधा छू लिया 

सोने चाँदी मोतियों का हार छोटा पड़ गया

-प्रताप सोमवंशी

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